कटु परन्तु सत्य

कभी कभी मन बड़ा व्यथित हो जाता है और आशंकाओं से घिर जाता है कि आज के सामाजिक परिवेश में भी सही और गलत के अलग अलग मायने हैं l शायद इसमे पुरातन से ही गरीब और अमीर का ही फर्क है, बाकी सब तो बातें हैl आज इंसान को मैंने हजारो रूपय की शराब पीते देखा है और तो और उसपर सैकड़ों रुपए टिप देते भी देखा है l इसके उलट मैंने दो या तीन रुपए के लिए उसे झगड़ा करते भी देखा है l फिर उस झगड़े को सामाजिक न्याय और संस्कार से जोड़कर सही बताते देखा है l आप के पास जरूरत से ज्यादा धन है इसमे कोई बुराई नहीं है यह तो आपके कर्मफल का नतीजा है पर इसका मतलब यह तो नहीं कि इस अमीरी के कारण आपके लिए सही या गलत के मायने बदल जाते हैं l यह अधिकार तो शायद ईश्वर के पास ही है कि गलत क्या और सही क्या l
मान लेता हूँ तोड़ मरोड़कर कहने से शायद सच सच ना रहता हो पर क्या इससे सही या गलत पर कोई प्रभाव पड़ेगा, मुझे नहीं लगता l अगर किसी गाँव के गरीब नें आप को आपके समय पर कोई सुविधा देने के नाम पर कुछ ज्यादा पैसे की मांग की तो वो नागवार गुजरा और कहीं मदिरालय या बड़े होटल में बैठकर दोग़ुने दाम पे सुविधा लेना आपको सही लगता है और अगर उस गरीब के मुह से कुछ भी निकल आया तो आपका अहम सर्वोपरी हो जाता है यहाँ तक कि आप अपने संस्कार भूलकर उससे गली गलोज यहाँ तक की मारपीट पर उतारू हो जाते हैं l उसके परिवार के सामने, बच्चों के सामने, उसके बूढ़े माँ बाप के सामने आप उसे मारने की धमकी देते हैं या यूं कहें मार भी देते हैं मात्र इसलिए कि वह गरीब कम पढ़ालिखा या मॉडर्न नहीं है l उसका दोष इतना कि वह आपको सुविधा दे रहा था l इन सबसे आपके मुह रूपी नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह तो लग ही जाता है कि आप एक संस्कार वान पुरुष हैं और अपने परिवार, माँ बाप या समाज में एक अच्छा स्थान रखते हैं पर शायद आप का अंत मन जानता होगा कि आप मानव श्रंखला में शायद सबसे निम्न दर्जे के प्राणी हैं l शायद ही कभी ये अमीरी गरीबी का फर्क मिटे पर संस्कार और बौद्धिक क्षमता का पलटना तो संभव ही है l

Baba allahabadi

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