यात्रा रजमेरगढ छत्तीसगढ़



दोस्तों स्वागत है आप का, काफी दिनों से मुलाकात नहीं हुई हो भी कैसे यह बंजारा कहीं गया भी तो नहीं जो उस जगह का वर्णन बताए | शायद इसमें इस बंजारे की ज़्यदा गलती नहीं है हालात ही कुछ ऐसे हैं आजकल इस बंजारे के  हाहाःहाहाः |
तो दोस्तों हमारे बिलासपुर  रॉयल राइडर क्लब की तरफ से निमंत्रण आया की 9 सितम्बर 2018 को रजमेरगढ चलना है | हमेशा की तरह मैंने उस जगह की जानकारी लेने की कोशिश की पर इस बार गूगल माता की बोलती बंद थी कोई जवाब था उनके पास | मैनें जाने का फैसला किया | सोंचा जहाँ के बारे में जानकारी नहीं वहां नहीं जाना चाहिए | कुछ लोगों से बातचीत भी हुई पर किसी ने संतुष्ट करने वाला उत्तर नहीं दिया | अचानक 8 सितम्बर को मेरे जहन में आया की मैं तो बंजारा मन, घुम्मकड़ हूँ सो जाने से क्या डरना और क्या सोंचना | चलो जो होगा देखा जाएगा |
हम तय समय पर पहुँच गए नियत स्थान पर जहाँ हमें मिलना था सुबह 6:00 बजे पर भारतीय होने का लाभ तो लेना था सो हम नेहरू चौक बिलासपुर से करीब 7:15 पर ही निकले| मतलब करीब 45 मिनट लेट से | आपसी विचार विमर्श से तय हुआ की नास्ता जल्दी कोटा में ही कर लेंगे क्यूंकि उसके बाद अचानकमार रिजर्व जंगल जाता है और उस जंगल में करीब 60 km तक एक्का दुक्का दुकाने ही हैं |
खैर हम करीब 8:30 पर कोटा पहुँच गए और संतोष होटल में रुके नास्ता करने | सुबह का समय था सो अभी नास्ता बनना शुरू  ही हुआ था और सात लोगों को देख कर उसने कार्य की गति बढ़ाई और समोसा, जलेबी, दाल बड़ा तो दे ही दिया | हम लोग घुम्मकड़ के साथ साथ थोड़ा भुक्कड़ भी हैं सो मैं, रचित और संदीप तो अपने पसंदीदा काम खाने में जुट गए| हाँ एक बात जरूर बताना चाहूंगा की हम तीनों एक ही बेंच पर बैठे थे | होटल का मालिक हम तीनों को बार बार देखता और मंद मंद मुस्कुराता | मुझसे सहन नहीं हुआ और मैंने पूँछ ही लिया, क्या हुआ आप हम तीनों को देखकर बहुत मुस्कुरा रहें हैं | वो फिर तेजी से हंसा और बोला  कुछ नहीं भैया | मैं कुछ समझ पाता की रचित ने कहा, सर ज़्यदा हंसना नहीं ये बेंच जिसपे अपन तीनों बैठे हैं टूट जाएगी | बात तो सही थी हम तीनों की शारारिक संरचना है ही ऐसी की कोई भी हंस दे | ऐसा नहीं है की हम आदिमानव की तरह हैं पर जब हम साथ होते हैं तो कुछ ऐसी हरकत  हो ही जाती  है की देखने वाला जरूर सोंचेगा की ये असल भुक्कड़ हैं | नहीं तो आप ही बताए कौन इतनी सुबह चार समोसा, दो दाल बड़ा,100  ग्राम जलेबी और चाय का नास्ता करता है | पर क्या करें हम तीनों हैं ही ऐसे और मुझे तो इस पर गर्व है| (फोटो मांगे साथ में )
बहरहाल हम चल दिए अमरकंटक की ओर | अब तक ये मालूम हो चूका था की रजमेरगढ अमरकंटक हो के ही जाना है सो हमनें सोंचा की अमरकंटक पहुँच के पता करेंगे | आगे आया अचानकमार का जंगल | प्रकर्ति ने लगता है उस जगह को अपने हाथों से बनाया है | बेइंतहां सुन्दर है वो जंगल पर समस्या यह है की आपको 90 मिनट में पार करना होता है करीब 50 km का जंगल और 5 बैरियर हैं जो बाकायदा आपके टिकट पे समय दर्ज करेंगे | इसलिए कही रुकने का समय ही नहीं होता, आप किसी तरह जंगल पार करना चाहते है | वैसे जो लोग अचानकमार घूमने आते हैं वो जरूर रुकते हैं और जंगल घूमते हैं | पर रोड की हालत खस्ता है खासकर छपरवा से लभनी बैरियर तक | ज़्यदा समय वही लग जाता है | अब हम केवंचि पहुँच चुके थे और  सोंचा चाय पी ली जाए | आप दोस्तों को तो पता ही है कि मोटरसाइकिल प्रेमी की ये कमजोरी होती है, उन्हें आप खाना दो चलेगा पर चाय जरूर चाहिए |
  हमने अमरकंटक पहुँच कर पता किया लोगों से रजमेरगढ के बारे में और लोगों ने बताया की पास ही है करीब 18km | चूँकि हम अमरकंटक कई बार जा चुके थे सो कोई परेशानी नहीं हुई | हम पहुँच गए पूंछते पूंछते | जैसे ही हम रजमेरगढ के रास्ते में आए  की अचानक हम सभी के चेहरे पर  ख़ुशी चमकने लगी | एक तो 5km की कच्ची सड़क जो पूरी तरह ओफ्फरोडिंग का एहसास दिलाती है और नजारा तो शब्दों से नहीं बताया जा सकता | ना ही उसकी तुलना की जा सकती है | हरियाली और जंगल का जो नज़ारा  है देखते ही बनता है | ऊपर पहाड़ से नीचे बने घरों और जंगल को देखने से सम्मोहन सा होता है | है तो चारो तरफ पथरीले पहाड़ पर मजाल आप कहीं पत्थर दिखा पाओ | चारों तरफ हरियाली ही हरियाली | प्राकर्तिक सुंदरता और मनोरमता का सुन्दर उदहारण है रजमेरगढ | हाँ उस जगह गजब की शांति है और मन नहीं करता की वहां से लौटा जाए | कुछ कमियां है जो शायद भविष्य में ठीक हो जाएँ |
एक विनम्र निवेदन है की वहां गन्दगी करें |
वहां से करीब 2 :00  बजे हम वापस चल दिए और तय हुआ की खाना केवंचि में खाएंगे | सभी केवंचि पहुँच कर अपनी भूख लगे मिटाने | पर हम भुक्कड़ लोग, सो कुछ ज़्यदा  ही खा बैठे | थोड़ा परेशानी भी हो रही थी मोटरसाइकिल जो चलाना था | अब हम करीब शाम 4: 30 पर चलने की तैयारी कर रहे थे की संदीप ने कहा चलिए नए रास्ते से चलते हैं | है तो पहाड़ी सिंगल रोड पर अच्छा है | हम सब ने हामी भरी और चल दिए साथ साथ |
अब हमनें लौटने का रास्ता लिया खोंगसरा - बेलगहना - कोटा- बिलासपुर वाला | है जरूर वो सिंगल रोड और कहीं कहीं कटनी बिलासपुर रेल रूट भी दिखता है पर वो रास्ता है बहुत सुन्दर | छोटी छोटी पहाड़ियों से गुजरता वो रास्ता मन मोह लेता है | हम करीब शाम 6:00 बजे कोटा पहुँच गए और चाय पीने की प्रबल इच्छा थी | सो वहां हमनें चाय बिस्कुट किया | आपस में बातें करते रहे और चलने के बाद करीब 7:30 बजे बिलासपुर पहुँच गए |
इस यादगार यात्रा के दौरान मैं और लोगों से मिला जिनसे पहले कभी नहीं मिला था यकीन करें अब वो मेरे अच्छे साथी हैं | हाँ थोड़े मस्तीले है सभी हा हा हा |
धन्यवाद उन सभी का जिन्होंने मुझे मौका दिया अपने साथ समय बिताने और यात्रा करने का |



Roopesh Tripathi –           roopeshramakant
























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