बगुला भगत या हंस (फैसला आपका)
दोस्तों जैसा विदित है कि मैं घुमक्कड़ टाइप का इंसान हूं और अपनी मौज में रहना मेरी जीवन शैली है l इसी तारतम्य में एक दिन मैं अपने एक दोस्त के साथ फोटो लेने के लिए कुछ पक्षियों की तलाश कर रहा था l चूंकि इलाका कुछ ग्रामीण और शहर के बीच का था सो संभावना कम ही थी और ऊपर से सूर्य देव का हल्का प्रकोप भी था l हमने लौटने का मन बनाया ही था कि देखा एक किसान नें अपने खेत में पानी लगाया है l उसके आसपास के खेत परती पड़े थे और उस खेत में सफेद बगुला का पूरा झुंड l जैसे जैसे खेत मे पानी बढ़ता जा रहा था बगुलों की संख्या बढ़ती जा रही थी l हम दोनों ने भी अपना मोर्चा संभाला और फोटो लेने लगे l
बहुत ही सुंदर पक्षी है यह बगुला l एक दम सफेद सुंदर तन, मनमोहक आँखें l कहने का मतलब सुंदरता की कोई कमी नहीं है फिर क्यूँ लोग उसे हेय या मजाकिया दृष्टि से देखते हैं l कहावत भी प्रचलित है "बगुला चला हंस बनने" l मैं कोई जीव शास्त्र का जानकार नहीं जो हंस और बगुला की सारारिक तुलना कर सकूं पर आप ही सोचो उसका इतना उपहास क्यूँ l
क्या मानव जीवन से बगुला की तुलना की जा सकती है l अपने आसपास भी तो ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो हंस जैसा बनना चाहते हैं l ईश्वर नें उन्हे भी तो अच्छा कुल, अच्छा तन, अच्छा संस्कार दिया है पर वो सभी भी तो अन्दर से चालाकी से भरे पड़े है l अगर ऐसे सज्जन लोगो की बात की जाए तो हर पल अपना कोई काम ही सोचते रहते हैं l नैतिकता से उन लोगों का कोई लेना देना नहीं होता, दूसरे के दुख या परेशानी से उन्हे कोई मतलब नहीं होता, तो क्या उन्हे इसी श्रेणी में रखा जा सकता है l दूसरे के किए काम में भी अपना फायदा देखना, यहां तक कि दूसरे के किए काम को भी अपना काम बताने से नही चूकते l शायद ही बगुला पक्षी में ऐसा कोई गुण होता होगा l फिर क्यूँ बगुला को इतना बदनाम किया गया l
मैं इतना जानकार नहीं की बगुला का स्वभाव वर्णन कर सकूं पर उसे देखकर तो नहीं लगता कि उसमें इतने अवगुण होंगे l अगर वो चतुर है तो एक अच्छी विधा दी है ईश्वर ने उसे पर मानव का क्या कहोगे?? चालाकी बहुत अच्छी होती है पर दूसरे को बेवकूफ़ समझना कहां की बुद्धिमानी होगी l अगर बुद्धिजीवी लोगों की बातों पे यकीन भी कर लिया जाए कि बगुला एक मक्कार प्राणी है और उसमे मक्कारी के सारे गुण है तो भी तो उसने अपने आप को हंस की तरह स्वेत बना के रखा है और सच भी है स्वेत रंग से सारे काले कारनामे दब जाते है l यकीन ना हो तो थोड़ा मनन कर लो l फिर भी स्वेत है तो प्रतीक शांति का l ये एक हास्य या तर्क का विषय हो सकता है l
आज के इस सामाजिक परिवेश में स्वार्थी, चाटुकार, लोभी और दिखावा प्रेमी लोगों की भरमार है या यूं कहें खचाखच भरे पड़े हैं l तो क्या हँसो की कमी हो गई है या विलुप्त हो गए हैं l यह तो अपनी अपनी नजर का भेद है l कुछ तो हंस बचे ही हैं तभी तो बगुला की पहचान कायम है l अन्यथा कौन बनना चाहेगा हंस के जैसा l अगर बनना ही है तो सीधे हंस क्यूँ ना बना जाए जिसमे अच्छाई की सारी खूबी मौजूद है l बाकी ये तो अपना अपना नजरिया है कि किस तरह से देखते हैं l अगर आप के द्वारा किए गए कामों का विश्लेषण लोग बगुला समझ कर करते हैं तो आप कभी हंस नहीं बन पाओगे l यह आप के लिए केवल दिवास्वप्न की बात होगी l
बाबा इलाहाबादी
Comments
Post a Comment