गठबंधन
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दोस्तों कहने को तो है ये एक यात्रा वत्रातं पर शायद मेरी क़लम अपने उदेश्य पर खरी नहीं उतर पाई है । क्यूँकि यात्रा के बारे में बात करना ही था पर कुछ अपने बातों की तरफ़ मुड़ गया मैं।
हुआ यूँ यह बंजारा मन काफ़ी दिनों से परेशान चल रहा है और सच ही है परेशानी में अपने बीते हुए दिन कुछ ज्यदा ही याद आते हैं। ख़ैर बात यह है की मुझे अपने और आपके परिचित संदीप राठोर की शादी में जाने का मौक़ा मिला। शायद उसने बहुत ख़ास लोगों को ही बुलाया था। होगी कोई मजबूरी या सामाजिक बंधन। यह हमारा भारतीय समाज का ताना बाना ही कुछ ऐसा है की वह हमें कहीं ना कहीं मजबूर कर देता है । बहरहाल मुझे इस मुद्दे पे कोई राय नहीं देनी है।
सुबह जल्दी उठ के जाना था। चूँकि हम ट्रेन से जा रहे थे सो समय पे पहुँचना मजबूरी थी। हम नियत समय पर बिलासपुर जंक्शन पहुँच गये और हमारे साथ राइडर रचित भी हो लिए। थोड़ी जद्दो जहद के बाद हमें सीट मिली और हम राजनंद गाँव की ओर चल दिए। रास्ते में ट्रेन में बैठे बैठे मैं अपनी शादी की बिताई पूरी रस्मों रिवाज में पहुँच गया। वो मेरा आतूरता से इंतज़ार करना उस पल का जब मेरी संगनी मिली थी मुझे । सच यक़ीन मानों दोस्तों वो एहसास महसूस ही किया जा सकता है अपने आप में, शब्द ना बता पाएँगे। मन में जैसे तरंगें सी उठती हैं और छुप कर इंशान मुस्कुरा लेता है। शायद यही बंधन ऐसा होता है जिसमें अपनी आतूरता और ख़ुशी इंशान किसी को बताता नहीं है । मैं भी ऐसा ही था और अपनी संघनी , सखा को याद कर रहा था, पता ही ना चला की राजनंद गाँव आ गया ।
हमने आधुनिकता का सहारा लिया और नियत स्थान पर पहुँच गये। हमारे रुकने का उत्तम प्रबंध था और लोग भी ज्यदा ना थे सो आराम करते रहे और बातें, हँसी मज़ाक़ चलता रहा। ख़बर आई की चलो अँगूठी की रस्म आदायगी होने वाली है । हम सज धज कर पहुँच गये। देखो हमारा संदीप अपने पूरे शबाब पर था और उसके चेहरे का तेज़ देखने ही लायक़ था, पर जब उसकी प्रियतमा वहाँ आई अपनी सहेलियों के साथ तो उसके तेज़ के सामने हमारे संदीप का तेज़ थोड़ा फीका पड़ गया।वो हमारे परिधान में सजी सँवरी थोड़ा घबराई सी आई और संदीप के साथ बैठ गई। यक़ीन ही ना हो रहा था कि ये बालिका एक कामकाजी महिला है और उसमें अपने निर्णय लेने का साहस है।वो दोनो बहुत ख़ुश थे ये काफ़ी रोमांचित कर दे रहा था मुझे ।
चूँकि शादी दिन दिन की थी और सारे रस्मों रिवाज़ दिन में निपटाने थे सो समय का भी ध्यान रखना था। अँगूठी की रस्म अदायगी हुई और वहीं जयमाल भी हुआ।यूँ तो संदीप के पिताजी से पूर्व में एक दो बार मिला था पर आज उनकी ख़ुशी देखने लायक़ थी। हो भी क्यू ना अपने बेटे की शादी जो कर रहे थे। यह मैं ऐसे ही नहीं कह रहा हूँ। जयमाल के बाद संदीप का जूता चोरी हो गया। अरे भाई यह तो रस्म है और शायद वर और वधू पक्ष के लोगों के मिलने,जानने का साधन। हँसी ठिठोली के दौरान तय हुआ की जूता 5001 में मिलेगा पर पिताजी नें 11000 दे दिए निकाल के। आप ही बताएँ यह हमारी हार थी या हमारी जीत।एक बात तो तय हो गई की पिताजी की ख़ुशी जीत गई थी।
कुछ रस्मों के बाद गायत्री मंदिर में शादी होना था सो हम सब को थोड़ा समय मिल गया आपस में जानने समझने का। मैंने, रचित और पिताजी ने एकसाथ दिन का भोजन लिया और बहुत सी अच्छी बुरी बातें की आपस में जैसा होता है।मैंने जाना की संदीप के पिताजी एक ज़िंदादिल इंशान हैं उनसे मिलकर मज़ा आ गया।
शाम क़रीब 4:00 बजे हम गायत्री मंदिर पहुँच गए। शायद मैं चाय के चक्कर में थोड़ा लेट हो गया था। देखा की वर वधु मण्डप में बैठे हैं और रस्मों और श्लोकों का दौर चालू है।आँखो आँखो में मेरा और संदीप का हाल चाल हुआ और हम शामिल हो गए।
अब बात आई कन्यादान की तो थोड़ा मामला गमगीन हो ही जाता है। नीचे बिछी परात(एक बड़ी थाली), उसपर बाप के हाथ में माँ का हाथ और उन दोनो के हाथों में आटे का पिंड लिए कन्या का हाथ और भाई द्वारा उस पिंड पे जल डालना और फिर कुछ फूल माला, द्रव्य के साथ पिंड और कन्या का हाथ वर को सौंपना। यही है सनातन कन्यादान मंत्रों के साथ। पर उस पल की वेदना कन्या के माँ बाप भाई के चहरे पे साफ़ दिखाई देती है।यह इतना सहज नहीं होता होगा कि अपने जिगर के टुकड़े को किसी को एक पल में सौंपना और उसी पल मान लेना कि अब हमारी बिटिया अब तुम्हारी हुई, हमारा कोई अधिकार ना रहा, प्यार ना रहा। शायद पत्थर का कलेजा करना होता होगा उस पल माँ बाप को।नमन है ऐसे माँ बाप को।
सात फेरों को रस्म हुई। अब शाम को रिसेप्शन होना था और भोजन।हम थक भी गए थे दिनभर की आपाधापी में सो मैं और रचित आ गए आराम करने के लिए।
शाम को हम रिसेप्शन में पहुँचे और देखा संदीप मियाँ बीवी स्टेज पर विराजमान है और लोगों का मिलना जुलना, फ़ोटो खिचाने का कार्यक्रम चालू है। चूँकि हम लोग भुक्कड ग्रूप के सदस्य हैं तो हमारा ध्यान खाने की तरफ़ ही था और खाने की सुगन्ध ने हमें पहले वहीं बुला लिया। हम लोगों ने अपने हिसाब से पेट पूजा की (बताया नहीं जा सकता) और फिर संदीप और उसकी धर्मपत्नी से मिले।हमने अब जाने की इजाज़त भी ले ली।
थोड़ी देर बाद हम चल दिए बिलासपुर की ओर इस शादी की मीठी मीठी यादों के साथ।
मेरी कामना है कि उन लोगों का जीवन सुखमय हो हमेशा ।
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