गुरु चेला चले चित्रकूट देखने



दोस्तों क्या कभी मज़ाक़ भी हक़ीक़त होता है । ऐसा कम ही होता है कि मज़ाक़ हक़ीक़त बने और पूरा भी हो जाए । हुआ कुछ यूँ कि वॉट्स ऐप पर हमारे ग्रूप में बातें चल रही थी कि आजकल बस्तर जिले के चित्रकूट जल प्रपात इस समय अपने पूरे शबाब पर होगा । उसे देखने, महसूस करने का यही सही समय होता है । बाक़ी मौसम में भी वह दिखता बहुत सुंदर पर बारिश के मौसम में वो पूरे रौद्र रूप में होता है । हम लोगों ने कुछ चित्र भी आदान प्रदान किए ग्रूप में ।
चूँकि संदीप और मैं कुछ घुम्मकड स्वभाव के हैं और वो प्रकर्ती को महसूस करता है तथा दोनो ही मज़ाक़िया भी बहुत हैं । दिन भर में वो दो तीन बार मज़ाक़ कर ही देता कि बाबा चलो और हम दोनो हंस देते । मैं केवल यही कहता की बाँक़ी लोगों से पूछो और बात ख़त्म हो जाती । हाँ  मैं यह ज़रूर कहता कि मैं तैयार हूँ । 
एकाएक 10 अगस्त को उसका मैसेज आया की होटेल की बुकिंग देखूँ क्या और मैंने कहा देख लो । यहीं पर मज़ाक़ सच हो गया । थोड़ी देर बाद उसने होटेल की बुकिंग स्लिप भेज दी मुझे । मुझे अफ़सोस भी हुआ कि मज़ाक़ ठीक नहीं था । मैं कहीं जाना नहीं चाहता था मन से । हर आदमी की कुछ अपनी परेशनियाँ होती है जो जग ज़ाहिर नहीं की जा सकतीं । अब ना जाना ठीक ना होगा यह सोंच कर मैंने मन बना लिया । शायद हमारे ग्रूप के बंदे इसे अब तक मज़ाक़ ही समझ रहे थे सो किसी नें प्रतिक्रिया नहीं की हमारे जाने के बाबत । 
अनमने मन से ही सही पर अब जाने की सोंच लिया तो जाना है यह सोंच कर मैंने अपनी छोटी सी पैकिंग कर ली और सुबह जाने का फ़ैसला कर के सो गया । 
आया दिन 11 अगस्त का मैं सुबह 3:35 पर उठा और कुछ इधर उधर करने के बाद नित्यक्रिया से निपटने के बाद ठीक 4:45 पर भगवान के सामने खड़ा था और उनसे आशीर्वाद ले कर चल पड़ा।
जैसे ही अपना यमदूत (मेरी डस्टर) स्टार्ट की तो लगा चाय तो पी ही लिया जाए सो वापस आ कर चाय नमकीन की और संदीप के घर की ओर चल दिया । ठीक 5:30 पर मैं उससे मिला । वो पूरी तरह से तैयार था अपने कैमरा, गोप्रो कैमरा, गिम्बल और ना जाने कौन कौन से फ़ोटोग्राफ़ी के उपकरण ले कर। कुछ को तो मैंने अपने जीवन में पहली बार देखा है । पर एक बात अवश्य थी की उसके चेहरे की ख़ुशी और उत्सुकता देख कर लगा की अब तो चल ही रहें हैं तो क्यूँ ना पूरी तरह से एंज़ोय किया जाय इस यात्रा को और मैं ख़ुश होने लगा । या यूँ कहें कि उसकी ख़ुशी में शामिल होने लगा । 
हम चल पड़े बस्तर की ओर और मौसम भी बहुत सुहाना था सो हँसी ठिठोलि करते हम चल पड़े । लगभग 2:30 घण्टे बाद हम लोग रायपुर पहुँचे तो हमें लगा की कुछ चाय नास्ता कर लेना चाहिए पर यक़ीन मानें नया रायपुर देख कर भूल सा गये नास्ता । नया रायपुर बहुत अच्छा,सुनियोजित, सवयस्थित, आधुनिक और अद्भुत है । मेरी सलाह है कि ज़रूर देखे इस नायाब सोंच को । आपके सापों के प्रदेश छत्तीसगढ़ की सोंच को विराम ज़रूर लग जाएगा । मैं उसकी मनोरम वयस्था को देखते जा रहा था और चलते जा रहा था कि आ गया अभनपुर । नास्तेकी भूख चरम पर थी सो हम रुके बजरंग रेस्टारेंट में । संदीप नें बताया कि वो पहले भी आ चुका है इस होटेल में, यहाँ नास्ता अच्छा मिलता है । वहाँ हमनें पोहा और दोसा खाया । पोहा तो वास्तव में बहुत स्वादिष्ट था पर दोसा के बारे में मेरी राय अच्छी नहीं है । चाय पी कर हम चल दिए । धमतरी क्रॉस करने के बाद आया हसीन नज़ारों का इलाक़ा या कहें असली जंगल की सुरुआत । मैं प्रकर्ती प्रेमी उन नज़ारों में खो  सा गया । यक़ीन करें बे इंतहा ख़ूबसूरत है वो जंगल । ख़ूबसूरत सड़क जंगल  बीच ऐसी लगती है जैसे कोई नदी बह रही है । ग़ज़ब की शांति है उन जंगलों में । 
हम कांकेर क्रॉस कर चले जा रहे थे और आइ केशकाल की घाटी । है तो वो पहाड़ी रेंज पर बला की ख़ूबसूरत है वो जगह । आप अपने आप को रोक नहीं पाएँगे वहाँ रुकने से । हरियाली चीख़ती है वहाँ पे । टोटल 11 मोड़ों का है वो पहाड़ी रास्ता और ख़तरनाक भी पर ख़ूबसूरती का वर्णन शब्दों से नहीं किया जा सकता आपको जाना ही पड़ेगा वहाँ। लगा की कोहरा है वहाँ बहुत पर संदीप नें बताया की ये बादल है जो पहाड़ों पर आ जाते हैं । आँखों को यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि मेरा भारत इतना हसीन है हम क्यूँ बाहर का बखान करें । हमनें फ़ोटो लिए ढेर सारे और चले आगे ।
एक बात आपको ज़रूर बताना चाहूँगा की औरों की तरह मैंने भी सुना था  नक्सलवाद के बारे में की कांकेर से ही नक्सल बेल्ट शुरू हो जाता है सो अंदर ही अंदर मैं थोड़ा डरा हुआ था पर संदीप पर ज़ाहिर नहीं होने दे रहा था । आते जाते लोगों को देखता पर मुझे कुछ ऐसा दिख तो नहीं रहा था ।
अब थोड़ा चाय की तलब सी लग रही थी सो मैंने सोंचा की कहीं चाय पी जाए । हम छोटे से क़स्बे फरसगाओं  में रुके । चाय बिस्कुट किया और चल दिए । वहाँ दुकान पे ही एक सज्जन नें हमसे कोंडा गाँव जाने की लिफ़्ट माँगी । मैं सोंचने पर मजबूर हो गया की ठीक कर रहा हूँ की नहीं । पर थोड़ा डर के साथ मैंने उन्हें गाड़ी में बैठा लिया । कोंडा गाँव में वो उतर भी गया तो लगा की बेकार में शंशय पाल रखा हूँ । मैं अंदर ही अंदर मुस्कुराया की इतना डरपोक तो नहीं हूँ मैं । 

गूगल माता हमें बता रहीं थीं की आप 2:00 बजे जगदलपुर पहुँच जाओगे और हम पहुँच भी जाते सही समय पर । आपसी विचार विमर्श से हमनें सीधे चित्रकूट जल प्रताप जाने का फ़ैसला किया और चल पड़े । हम क़रीब 2:45 पर वहाँ पहुँच गए। 
अब सामने था चित्रकूट जल प्रपात । देखकर तो एकाएक शब्द ही ना निकल पाए मेरे । सच पूरे रौंद रूप में था जल प्रपात । अद्भुत, अकल्पनीय , तबाही की ख़ूबसूरती है उस झरने में ।  उस मटमैले पानी के रंग के झरने को दूर से देखने पर ग़ज़ब का सुंदर लगता है पर थोड़ा पास जाने पर अंदर से डर और सम्मोहन सा होता है । पता नहीं कितना पानी एक साथ गिरता है और गिरते पानी से धुआँ निकलता है । उसकी विशालता देखते ही बनती है । ऐसे ही नहीं उसे भारतीय नियाग्रा फ़ॉल कहा जाता यह तो समझ आ गया था । बस्तर प्रशासन ने उसे और सुन्दर बना दिया है । हम वहाँ विस्मित थे कि उसे देखें या फ़ोटो विडीओ लें । संदीप को छत्तीसगढ़ डायरी और यू टूब SR DIARY के लिए फ़ोटो विडीओ लेना था सो क़रीब दो घण्टे वो उसी काम में लगा था । मैं फटी आँखो से उसे देखता रहा बैठ कर । 
हाँ एक बात अवस्य हुई कि मैंने भी थोड़ा टेक्नोलाजी का उपयोग किया और छोटा सा विडीओ अपनी श्रीमती जी को भेज दिया । वहाँ से तुरंत जवाब आया बहुत पास खड़े हो , दूर रहो वहाँ से । तब सही में लगा की इसका रौंद रूप फ़ोटो में भी दिखाई दे रहा है । 

अब क़रीब 5:00 बजे हम अपने होटेल की ओर चल दिए । वहाँ से क़रीब 30 KM पड़ता है जगदलपुर । अगर आप आएँ तो वहीं चित्रकूट फ़ॉल के पास ही सरकारी रेस्ट हाउस या प्राइवट रिज़ॉर्ट में रुक सकते हैं । कहते है की रात्रि में वो और ख़ूबसूरत दिखता है जब लाइट पड़ती है सीधे झरने पर । 

बहरहाल हम क़रीब शाम 6:00 बजे अपने होटेल सूरी इंटर्नैशनल पहुँचे । यक़ीन मानें थकान बिलकुल ना थी हमारे चेहरों पर । हाँ भूख बहुत तेज़ थी और किसी नें हमें बताया की मयूरी रेस्टारेंट में खाना स्वदिस्ट मिलता है । 
हम खाने के पहले एक बार जगदलपुर देखना चाहते थे सो गाड़ी में ही बैठकर रोड , चौराहा घूमें करते भी क्या बारिश हो रही थी । हमनें मयूरी रेस्टारेंट में खाना खाया । सही में खाने का स्वाद तो है उस जगह । आप जाएँगे ना वहाँ ??। रात्रि क़रीब 9:00 बजे हम वापस होटेल पहुँचें और बातें करते करते निद्रा की गोद में चले गए । 
12.08.2018
सुबह क़रीब 6:15 बजे हम दोनो उठ गए और बारिश का मौसम देख कर कहीं जाने की हिम्मत ना कर पाए । अन्दर से एक ख़ुशी की अनुभूति थी कि जो देखने आए थे वो तो देख ही चुके हैं । 

हमनें क़रीब सुबह 8:15 पर होटेल छोड़ दिया और प्लान बनाया की कड़कनाथ मुर्ग़ा की पोल्ट्री फ़ार्म देखने जाएँगे और अगर हो सका तो केशकाल की घाटी में थोड़ा प्रकर्ती का आनंद लेंगे । हम नास्ता करना चाहते थे । रास्ते में ही पड़ा अन्ना टी स्टॉल एंड साउथ धमाल । हम रुके नास्ता करने, आपको यक़ीन तो करना होगा की मैंने अपने जीवन का सबसे स्वदिस्ट दोसा खाया है वहाँ पर वैसे घर के अलावा मुझे कहीं का दोसा अच्छा नहीं लगता । एक प्लेट दोसा और एक प्लेट इडली मैंने खाई और संदीप महाशय नें तीन प्लेट दोसा खाया । नास्ता नहीं पूरा डटाडैट भोजन हो गया था सुबह सुबह ।

हम क़रीब 9:00 बजे जगदलपुर से चले पर बारिश नें हमारा कड़कनाथ पोल्ट्री फ़ार्म देखने को सपना ही बना दिया । हमनें देखा ज़रूर पर वर्णन नहीं कर पाउँगा । शानदार सड़कों, जंगलों का आनंद लेते हम केशकाल पहुँचें पर बारिश नें हमें वहाँ भी गाड़ी से नहीं उतरने दिया ।

हम क़रीब शाम 4:00 बिलासपुर पहुँच गए और कुछ चाय नास्ता करने के बाद अपने अपने घर की ओर चल दिए । अब लगता है कि ये यात्रा सिर्फ़ मज़ाक़ से शुरू हुई और इतनी मीठी यादों पे ख़त्म हुई । सच में मेरा मन बंजारा तो नहीं है ।
धन्यवाद संदीप i love you

बाबा इलाहाबादी
Roopesh Tripathi –           roopeshramakant





















Comments

  1. शायद किसी लेखक के साथ जाने की यही अच्छाई की आप जब भी उनकी लिखी कहानी पढ़ते हैं तो आप उस वक़्त में पहुंच जाते हैं। सर आप बेमिसाल हैं।

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