यात्रा भोरमदेव छत्तीसगढ़
यात्रा
भोरमदेव छत्तीसगढ़
लोग कहते हैं की मन बड़ा बावरा होता है पर मैं कहता हूँ कि घुम्मकड़ मन कुछ ज्यादा ही बावरा और चंचल होता है उम्र की सीमा से उसे कोई लेना देना नहीं है | और घुम्मकड़ इंसान को घूमने न दिया जाए तो वह अपने आप को पिंजड़े में कैद पाता है | उसका बचपन मन बेचैन सा रहता है |
मैं ऐसे एक सख्श को जानता और मानता हूँ वो है मनीष मिश्रा (मोनू)| हमारी भूटान यात्रा के बाद हम कहीं भी जा नहीं पाए थे घूमने , हो सकता है हमारे बीच में सामंजस्य न बन पाया हो या समय की कमी या फिर जिंदगी का बोझ |
जाना तो तय हुआ नाक़िआ का ( कहीं कोरबा से आगे एक मनमोहक जगह ) पर आपसी विचार विमर्श से तय हुआ की भोरमदेव चलते हैं | बारिश का मौसम और रोड कंडीशन काफी मायने रखती है हम जैसे राइडर के लिए |
अब शुरू हुआ बेचैनी का दौर की कब इतवार (15 जुलाई 2018) आएगा और हम जायेंगे | मोनू जैसा कहा बावरा मन एकदम बच्चा बन जाता है और बार बार पूछता है और खुश होता है | वैसे वो मुझसे २० दिन का उम्र में बड़ा है | आ गया इतवार सुबह 6 :00 बजे निकलना था ,बिलासपुर से करीब 110 km पड़ता है भोरमदेव | मोनू महाराज सुबह 4 :00 बजे ही वाट्सएप्प पर आ गए और सुप्रभात अभिवादन शुरू कर दिए | हम सभी नें अभिवादन स्वीकार कर 6 :00 बजे नेहरू चौक पर मिलने का तय किया और लग
गए अपने कामों में |
ठीक 6 :00 मैं नियत स्थान पर पहुँच गया और अपने सभी साथी को बताया , 10 -15 मिनट में सभी पहुँच गए | अब हम पांच मस्तीले राइडर मैं , संदीप राठौर , रचित ,रविशंकर साहू ,मोनू निकलने ही वाले थे या कहें चल ही दिए की संदीप ने कहा सर गगन सिंह आ रहा है | मैंने कभी पूर्व में गगन के साथ राइड नहीं की थी पर हम लोगों ने धीरे धीरे चलने का मन बनाया और गगन को कहा कि कवर कर ले 10 km तक नहीं तो हम रुक जायेंगे उसके लिए |
पता नहीं क्यूँ मैं मोटरसाइकिल पर जब भी कहीं जाता हूँ तो मुझे अजीब सी शांति मिलती है शायद और राइडर लोगों के साथ ऐसा होता होगा की नहीं ,मैं नहीं जानता पर जैसे ही शहर छूटता है ग्रामीण अंचल शुरू होता है बहुत सुहाना लगता है |
खैर हम सब मतलब अब गगन भी हमारे साथ चल दिए | बारिश के दिन और छत्तीसगढ़ के जंगल शब्दो से ख़ूबसूरती बयां नहीं की जा सकती | आप मानो या न मानो राइडर थोड़ा भुक्कड़ी होते हैं | उन्हें जगह जगह का खाना अच्छा लगता है | हमारी भी यही आदत है 7 :30 बजे मुंगेली पहुँच गए और जिस होटल (वैष्णो होटल ) गए वह अभी खुल ही रहा था बेचारा खिलाता भी तो क्या | सब पूछने लगे क्या क्या है थोड़ी देर बाद उसने बताया की पराठा दही खिला सकता है, बस फिर क्या हमने भी आर्डर दे दिया | वो धनिए की चटनी ,दही ,आचार और पराठा पेट भर खाया गया और चाय का आनंद लिया गया |
मुंगेली से पंडरिआ तक तो हम चलते रहे जैसे ही
पहाड़ो को देखा हमारा मन फोटो लेने को करने लगा | जानते तो
है संदीप राठौर को छत्तीसगढ़ डायरी के लिए फोटो लेना रहता है और हम सब मस्त | हम मस्ती
करते रहे और फोटोग्राफी करते रहे | मोनू का बचपना चालू था वो
बोला आगे बोड़ला में बहुत अच्छी कचौड़ी मिलती है सो हम लोगों ने सब के लिए कचौड़ी पैक
करा ली और चल दिए |
हम जैसे ही बंजारी चेक नाका पहुंचे और जंगल
वाले रास्ते पे आए, लगा कि कहाँ आ गए (बेइंतहां सुन्दर है वो जगह ) यकीन माने मन
नहीं कर रहा था आगे जाने का | हम रुक भी गए एक
जगह रोड के किनारे मस्ती करने , फोटोग्राफी करने के लिए |
यहीं हमें समय लग गया क्या करते जाने का मन ही नहीं कर रहा था |
हमने वहीं कचौड़ी खा ली और समय हो गया दिन का 11 :00 अब प्लान बना 12 :30 तक भोरमदेव मंदिर से वापस आ
जायेंगे | पर जैसे ही हम आगे बढ़े वो मनमोहक दृश्य देख कर रोक
न सके रुकने से, फिर रुके | किसी तरह
हम 12 :20 तक तो
मंदिर ही पहुंचे |
प्रसाद लेकर हम मंदिर प्रांगण में पहुंचे |
है तो वो शिव मंदिर पर उसकी कलाकृति किसी का भी मन मोह ले | जहाँ तक मैं जनता हूँ बहुत प्राचीन मंदिर है वो शायद कलचुरी के समय का और
मंदिर देख कर खजुराहो या कोणार्क के सूर्य मंदिर की याद आ जाती है | वैसे रचित ने मुझे बताया कि लोग इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहते हैं |
बहरहाल पूजा करने और थोड़ा घूमने के पस्चात हम वापस चल दिए | थोड़ा भूख भी अपना जलवा दिखाने लगी थी |
हम लोगों नें सोंचा आगे किसी ढाबे पे कुछ खाया
जाएगा पर ऊपर ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था, जोरों की बारिश शुरू हो गई जंगल में |
यहाँ तक की रैनकोट पहनते पहनते हम आधा तो भीग ही गए | उस बारिश का आनंद ही कुछ और था अगर बिलासपुर से दूर ना होता तो जरूर भीगता
और मजे लेता बारिश के | बारिश थोड़ा कम हुई और हम लोग चल दिए | सोंचा
पंडरिया में खाना खाया जाएगा पर हमें वहां कुछ समझ नहीं आया और हम पंडरिया क्रॉस
कर गए, अब मुंगेली आना था |
मुंगेली लगभग 50 km पड़ता है बिलासपुर से पर करीब 70
km पहले ऐसे काले बादलों ने घेरा की अँधेरा सा हो गया | वो मौसम लिख कर नहीं बताया जा सकता | जैसे ही हम
रुके झमाझम बारिश होने लगी | हम लोग एक घर के टिन शेड में
बैठे रहे लगभग एक घंटा और समय हो गया था शाम का 4 :00 | बारिश
रुकते ही हम चले पर खाने के लिए वहीँ किसी ने बताया की एक km आगे राजपूत ढाबा है जहा खाना
अच्छा मिलता है | हम सब ने राजपूत ढाबा मे भरपूर पेटपूजा की
और मस्ती भी | खाना तो अच्छा था ही पर वह की चाय का कोई जवाब नहीं |
अब समय हो चुका था शाम का 5
:15 और बारिश का मौसम | हम सब ने प्लान किया
की अब निकल चला जाए , कही रुकना ठीक नहीं | सो हम करीब 6:30 पर बिलासपुर पहुंचे | आपस में अभिवादन कर एक दूसरे से बिदा ले रहे थे की जोरो की झमाझम बारिश
होने लगी | बारिश इतनी की मुझे पक्का यकीन है कि सभी भीग कर ही घर पहुंचे होंगे |
उन मधुर यादों को याद करने पर अनायास ही चेहरे
पर मुस्कान आ जाती है |
क्या खूब वर्णन किया है आप ने इस trip को ।
ReplyDeletedhanyvaad bhai
Deleteएकदम सटीक वर्णन!
ReplyDeletethanks
DeleteLajawab likhe ho sir Maja aagiya padh ke
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