मोहब्बत या पश्चाताप


मोहब्बत या पश्चाताप

दोस्तों  मेरे एक मित्र हैं बचपन के कल अचानक उनकी तबियत ख़राब होने की खबर आई तो मैंने उनसे मिलने उनके घर जाने का फैसला किया| चूँकि हम दोनों नें साथ साथ बचपन में पढाई की है सो काफी खुले हैं हम दोनों आपस में , कोई औपचारिकता नहीं है |
हाल चाल होने के बाद अचानक उन्होंने एक प्रश्न किया कि मैंने अपनी मोहब्बत से शादी की है या पश्चाताप किया है | मैं एक दम सन्न सा रह गया यह सुन कर | आज 70 सावन पार करने के बाद और सफल दाम्पत्य जीवन जीने के बाद ऐसे प्रश्न का उत्तर देना क्या आसान है |
आज मैं पलट कर देखता हूँ तो मेरा पूरा जीवन चलचित्र की तरह मेरे सामने चलने लगता है और उसे देखते हुए आप को बताता हूँ , शायद आप सही बता पाएँ |
मेरा बचपन सरकारी क़्वार्टर में बीता है और बहुत अच्छा था मेरा बचपन| शायद बात रही होगी जब मैं आठवीं कक्षा में पढता था | हमारे ठीक पड़ोस में हमारी ही जाती के एक अंकल रहते थे और वो एक अच्छे पडोसी और पापा के अच्छे दोस्त भी थे | उनके बच्चों से मेरी भी बहुत अच्छी दोस्ती थी पर शायद उनकी लड़की से कुछ ज़्यदा ही थी | हम खूब बातें करते थे और साथ साथ खेलते थे | हम पढाई भी साथ साथ करते पर वो पढाई में बिलकुल अच्छी न थी |

दोस्तों यही एक घटना घटी, हुआ यूँ कि मैं गुल्ली डंडा खेल रहा था और मेरे द्वारा गुल्ली जोर से मारते ही गुल्ली सीधे उसके आँख में जा लगी | दिल धम्म से बैठ गया , दौड़ कर उठाया लोगों को बुलाया | उसकी आँखों से खून बह रहा था | मैं बदहवास सा देख रहा था | यह मेरी गलती थी या इत्तफाक पता नहीं |
बहरहाल मेरी खूब कुटाई हुई घर पर और मैंने कसम खा ली की अब गुल्ली डंडा कभी न खेलूंगा | डॉक्टर लोगों ने कहा चोट बहुत गहरी है शायद ही ठीक हो | सोते जागते मैं यही सोंचता कैसे हो गया यह सब | हाँ अब वो मुझसे कम ही बात करती | मैं कोशिश  भी करता तो नजरअंदाज करती अब वो |
धीरे धीरे समय बीतने लगा और एक उसकी एक आँख की रौशनी पूरी तरह चली गई | अब वो कम ही मुस्कुराती और ज्यादातर घर पर ही रहती | मुझे हमेशा अपराधबोध रहता अपने ऊपर | खैर मैं पढ़ाई करने बाहर जाने वाला था , MBBS में दाखिला हो गया था मेरा | वो भी अब BA करने वाली थी, पर हम दोनों के बीच एक अजीब सी दूरी हो गई थी | एक अनजान खाई सी बन गई थी | मैंने जाते वक़्त उससे बात करनी चाही पर उसका जवाब सुन कर दिल बहुत बोझिल हो गया | उसने कहा एक आँख तो फोड़ दी अब क्या दूसरी फोड़ना  चाहते हो , मैं अवाक सा रह गया |

मेरी पढ़ाई भी चलने लगी और उसकी भी | छुट्टी में जाता और सोंचता कि शायद मिले पर वो कभी न दिखती मुझे | मैं 4th ईयर में पहुँच चूका था और उसका BA फाइनल का पेपर चल रहा था | मैं सोंचता की एक बार मिल जाये तो कम से कम माफ़ी तो मांग लूँ | अचानक पता चला कि उसके लिए उसके मां बाप लड़का देख रहे हैं | ग्रेजुएशन के बाद शादी करने की सोंच रहे हैं वो लोग, पर कहीं बात बन नहीं रही है |
मैं बेचैन हो उठा मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था | मैंने एक पत्र उसके नाम लिख कर भिजवा दिया ( हमारे समय में टेलीफोन\ मोबाइल  नहीं था ) और उससे मिलने का आग्रह किया | उसके BA के आखरी पेपर वाले दिन सुबह ही मैं उसके कालेज पहुँच गया उससे मिलने | देखा आ रही है वो काला सा चश्मा लगाए | सच मानों मित्रों लगा की बला की खूबसूरत है ये और मेरे कारण क्या से क्या हो गया | वो पास आई और बोली बोलो क्या है क्यों मिलना है | मैंने कहा माफ़ी मांगना है तुमसे और हाथ जोड़कर माफ़ी मांगनी चाही तो वो बोली मैं गुस्सा नहीं हूँ तुमसे जो होना था हो गया | अब तुम डॉक्टर बनने वाले हो अब अपना  कैरियर देखो, बहुत सूंदर बीवी मिलेगी तुम्हे | और खिलखिला के हॅसने लगी वो , यकीन मानों उस हँसी ने मेरे होश उड़ा दिए | पता नहीं वो कटाक्ष था या सच, जो भी था ,था बहुत सुन्दर | मैं कुछ बोल नहीं पाया | मैंने कहा अभी शादी मत करो तो वो बोली क्या करूँ जो माँ बाप कर दे वो अच्छा |

समय अपनी रफ़्तार से आगे चल पड़ा मैं डॉक्टर बन गया और MD में दाखिले की सोचने लगा | उसकी शादी की बात कई जगह चली पर सफलता कहीं नहीं मिली | शायद एक कृतिम आँख आड़े आ जाती थी | मेरा दाखिला MD  में हो गया और मेरी भी शादी की बात चलने लगी घर पर | कई लोग रिश्ते के लिए दबाव बना रहे थे |

मैं घर आया हुआ था की अचानक वो मुझे दिखी मैंने आवाज देकर बुलाया तो वो अंदर की तरफ न जा कर मेरी तरफ आई और बोली कुछ बात है तो जल्दी बताओ नहीं तो मैं कल सुबह मामा के घर जा रही हूँ | मैंने शाम को मिलने का आग्रह किया और वो मान गई | विस्वास नहीं हुआ मुझे ऐसा कैसे हुआ |
शाम को मैं तैयार होकर उसके घर चला गया | सभी से मिलने के बाद मैं उससे बातें करने लगा | चूँकि हम पडोसी थे तो कोई धयान नहीं देता था सब अपने अपने कामों में लग गए | सहसा वो बोली तुम्हारी तो बात चल रही है शादी की कहाँ फाइनल कर रहे हो | मैंने कहा पहले तुम बताओ तो वो बोली कहीं तय नहीं हो रही है, पापा मम्मी बहुत परेशान हैं | मेरी एक आँख नहीं है न इसलिए | मेरा मन बैठ गया लगभग भावुक सा हो गया मैं | कुछ देर बातें करने के बाद मैंने कहा कि मैं देखूं तुम्हारे लिए दूल्हा | वो खिलखिला के हंस  पड़ी और बोली हाँ देखो कोई काना दूल्हा | मैंने उसका हाथ पकड़ कर कहा क्या बकती हो | वो बोली यही  सच है  और इसे ही स्वीकारना है मुझे और सब को |

रात भर नींद  नहीं आई रह रह कर उसका चेहरा मेरे सामने आ जाता हँसता हुआ | मैं अंदर ही अंदर रो रहा था और उस घडी को याद कर रहा था जब उसको मेरी वजह से चोट लगी | सुबह उठकर मैं धुप में खड़ा था चुप चाप , उसने दूर से ही इशारे से पूंछा क्या हुआ मैंने कुछ नहीं का इशारा किया | अचानक मेरी माँ वहां आईं और बोली तैयार हो जाओ लड़की वाले देखने आ रहे हैं | अचानक मेरे मुँह से निकल गया दुल्हन तो वो खड़ी है और कौन देखेगा | माँ ने गुस्से में कहा क्या बकते हो मैं चुप रहा |
अब घर में बवाल मच गया | पिता जी बोले इतना पढ़ाया इसी दिन के लिए की तुम इश्क फरमाओ और लव मैरिज करो | हमारे समय में लव मैरिज को अच्छा नहीं मन जाता था | मैं एकदम चुप रहा सभी नें मुझे खूब डाटा | शाम को पिता जी मेरे पास आए और बोले प्यार करते हो क्या तुम दोनों आपस में | दो तीन बार दबाव देकर पूछने पर मैंने हाँ में सर हिला दिया | पापा चुपचाप मेरे पास से चले गए |
बात पड़ोस में भी पहुँच गई पता नहीं कैसे शायद दीवालों के भी कान होते हैं | वो मेरे से मिली और पूछां क्या कर रहे हो , मैंने हंस कर कहा तेरे लिए दूल्हा ढूंढ रहा हूँ शायद मिल जाए | उसने कहा मैं तुम से तू हो गई और हसने लगी | मैंने उसे लगभग डाटते हुए कहा तू चुप रह अब मैं जो कर रहा हूँ करने दे | उसने कहा खिचड़ी खाओगे ( खिचड़ी मुझे बहुत पसंद है ) | मैंने कहा अब खिचड़ी तेरे हाथ की अपने घर पर खाऊंगा | वो पागल भावुक हो गई | मैंने उसका हाथ पकड़ा और बोला विश्वास कर मुझ पर |
दो दिन बाद मुझे जाना था सो थोड़ा बेचैन था मैं | अचानक शाम को पिता जी मुझे बुलाया और बोले हम लोग लड़की का हाथ मांगने नहीं जायेंगे अगर शादी करनी है तो वो लोग कर बात करें | इतनी आसानी से सब हो जायगा मुझे विश्वास नहीं हो रहा था | मैं बहुत खुश था पर उनके घर जाता भी तो क्या कहता | मेरी माँ ने मुझे इशारे से शांत रहने को कहा और वो सब देख लेंगी ऐसा बोला | दुसरे दिन वो शायद इन्तजार कर रही थी मेरा, जैसे ही धुप में आया वो बोली क्या हुआ | मैंने इधर उधर देखा और उसके पास जा कर बोला तेरे लिए  दूल्हा मिल गया है, बोल अपने बाप को जा कर बात कर लें | सच बहुत खुश था मैं | ठीक तीन महीने बाद हमारी शादी हो गई | दुसरे आम आदमी की तरह हमने भी अपने दाम्पत्य जीवन का आनंद लिया है | आज मैं नाती पोता वाला हूँ |

क्या जवाब दूँ अपने मित्र को ये तो अपने अपने समझ की बात है | मैंने अपनी मोहब्बत से ही शादी की है | जी हाँ अपनी मोहब्बत से |

कोई पश्चाताप और कोई पछतावा |
 
आप सहमत हैं ????

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