हमारा पुराना



मित्रों आज आफिस से थोड़ा जल्दी आ गया था और आफिस में ज्यदा काम न था सो कार्य कि थकान या बोझ न था | चूँकि संदीप से काफी दिंनों से मुलाकात न हुई थी तो उसी से मिलने का मन बनाया और अपनी मोटरसाइकिल (नैंसी) से निकल पड़ा|
छत्तीसगढ़ के बारे में क्या कहना वो तो सूरज को दिया दिखाने जैसा होगा | प्राकर्तिक ससाधन से भरपूर, मनोरम जगह से भरा हुआ, जगलों से भरपूर राज्य में कोई कमी तो नहीं है पर अब पहले वाली खाने कि चीजें कम ही मिलती हैं | याद आता है बचपन की अंगाकर रोटी, चीला,ठुसका और न जाने क्या क्या |
चूँकि मैं तो छत्तीसगढ़ कि पैदाइश हूँ नहीं पर काफी दिनों से यहाँ रह रहा हूँ और यहाँ के लोगों का भोलापन मुझे बहुत भाता है | संदीप से बाते करते करते अचानक हम एक गुपचुप के ठेले पर पहुंचे और वहां लिखी लाइन पढ़ कर मानों अंदर से स्फूर्ति आ गई( जुल्म कि जंजीरों से दुनिया कि शान अच्छी है , छोटी-मोटी नौकरियों से ये चाट कि दुकान अच्छी है )| यकीन मानें मैं ,संदीप और चाट वाले महाशय के बीच बहुत बात हुई | छत्तीसगढ़ के वर्तमान , भविष्य को लेकर और चर्चा का अंत हुआ यहाँ के खाने को लेकर |
हम तीनों का मत था कि अब शायद हम अपना पुराना खाना भूलते जा रहे हैं| मैं उन दोनों के चेहरे पर कष्ट देख रहा था | सहसा संदीप नें बोला ऐसा नहीं है मिलता है सब, कहीं कहीं बिलासपुर में और उसने मुझे दो जगह का नाम भी बताया |
बस फिर क्या था हम दोनों ही घुम्मकड़ और फूडी हैं चल दिए चीला खाने | मिलता है जनाब मिलता है सब, बिलासपुर छत्तीसगढ़ में कई जगह | हमनें खाया बहुत स्वादिष्ट था मेरा यकीन करें | छातिस्गढ़िया सेबल बढ़िया |
हाँ अगर आप को कुछ और जगह के बारे में मालूम हो जहाँ छत्तीसगढ़ी खाना  मिलता हो तो कमेंट में जरूर बताएं |

रूपेश रमाकांत
  

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