मस्तीले बुलेट पे _ कॉफ़ी पॉइंट
मस्तीले बुलेट पे
_ कॉफ़ी पॉइंट
दोस्तों मैंने अपने बचपन में एक राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म देखी थी बावर्ची |
उस समय तो एहसास नहीं था की क्या मायने हैं इस
डायलॉग के या भावनाओ के | एक जगह हीरो कहता
है कि हम किसी बड़ी ख़ुशी के चक्कर में कई छोटी छोटी खुशियां जाया कर देते हैं |
अब ४० सावन पार करने के बाद एहसास होता है कि
कितनी सच्ची बात है ये |
खैर मेरी पिछली भूटान राइड यात्रा के बाद मैं शायद बंध सा गया था | कोई राइड न कर पा रहा था | लगभग दो महीने बीत चुके थे, कोफ़्त सी होने लगी थी मुझे अपने आप पर |
सभी लोग मुझसे पूछते की कब जा रहे हो राइड पे,
मैं केवल मुस्कुरा देता पर उनकी मुस्कान भरी
आँखे देखता तो अंदर तक तकलीफ होती | मैं सोचता अब मुझे बड़ी राइड करना है और लोगों को बताना है| मैंने ऐसा किया भी पर इस लम्बी राइड का इंतजार
कब तक..........|
इसी बीच हमारे बीच का नखरीला राइडर रचित एक दिन बोला कि सर अब मैं कि पूरा छत्तीसगढ़ न घूम पाउँगा | मैंने पुछा ऐसा क्यों तो बोला की आप लम्बी राइड करोगे
और हम लोग आप के बिना न जा पाएंगे | बहुत शैतान है रचित या होशियार पता नहीं पर जिद्दी जरूर है और उसने कोरबा
(बालको) के पास कॉफी पॉइंट चलने का कार्यक्रम बना लिया | यकीन माने दिन में
२० बार पूछता कि सर चल रहे हो न | हंसी आती है उस
पर |
हमने ०५/११/१७ का दिन तय किया और हम लोग तैयार हुए जाने के लिए | हमारे ग्रुप में सभी मस्त मोटरसाइकिल चलाने
वाले है | जब भी कहीं जाने की बात
होती है तो जोश से भर जाते हैं | संदीप के हाथो
में तो जैसे जादू है फोटो खींचने का | सच बता रहा हूँ अगर संदीप कैमरा को पकड़ भर ले
तो वह अपनी बेहतरीन फोटो खींच देगा | नीरज जी जोश से भरे रहते हैं और हमारे एक्सपर्ट भी हैं |
रॉयल एनफील्ड मोटर साइकिल का पूरा गूगल हैं वो |
मनोज जी तो पूरी फोटोकॉपी है मेरी | एकदम जोशीले, निडर और मस्तीले |
सुबह ७:३० पर निकलना तय हुआ था सो हमें
७:०० बजे नेहरू चौक पे मिलना था | पर रचित का बचपना यहाँ भी शुरू था, भाई साहब लेट करने लगे | मैं , नीरज जी और मनोज जी नेहरू चौक पर आ गए |
आखरी वक़्त पे मालूम चला कि हमारे साथ कुमार रवि
भी चल रहा है | वो एक सौम्य सा
प्यारा सा MBBS थर्ड ईयर का
छात्र है | बहुत प्यार आता है उसपर |
रचित और मैं ही जगह नौकरी करते है और वो मुझसे जूनियर है, शायद काफी लेट करने की वजह से वो चुप-चाप संदीप
के घर पहुंच गया और संदीप से फ़ोन करा कर बुलाने लगा| खैर अब हम चल दिये | हमें वाया रतनपुर , कटघोरा हो कर जाना था | जैसे ही मिले , देखा की प्रवीण भी है साथ मैं... थोड़ा आश्चर्य हुआ पर मेरी और उसकी पटती बहुत
है , सो मैं खुश था | और हम सभी चल दिए कॉफ़ी पॉइंट की ओर | ठण्ड हलकी-हलकी थी सो मोटरसाइकिल चलाने में मज़ा भी बहुत आ रहा था | अब संदीप और मेरा रिश्ता कुछ खास हो चूका है |
पता नहीं कैसे पर अब हमें दोस्त कहना ठीक होगा ,
बड़ा-छोटा नहीं | वो बहुत काबिल इंसान है हर पल कुछ-न-कुछ मुझे सीखा ही देता
है और मुझसे कुछ सीखता ही है | हम लोगो ने
ऑनलाइन हेलमेट के लिए ब्लूटूथ इण्टरकॉम ले लिया है सो हम दोनों बातें करते-करते चल रहे
थे | चूँकि इस पूरे रास्ते की
जानकारी संदीप को है तो संदीप को ही लीड लेना था पर सबसे आगे मैं चल रह था |
ब्लूटूथ के कारण हम बात कर रहे थे , कोई परेशानी न थी |
संदीप ने बोला की पाली मैं नास्ता कर
लेते है , सो हम जैशवाल होटल में
रुके | कई बार जा चुके है वहां हम
लोग | जैसे ही पहुंचे
वो जनता था नास्ता करेंगे | उसने समोसा ,जलेबी, बड़ा और चाय दी नास्ते में| हम भुक्कड़ राइडर
ही हैं खूब खाया और चल दिए | रास्ते में संदीप
ने मुझे बताया की बालको प्लांट की कालोनी के बाद जंगल आ जायगा और कॉफ़ी पॉइंट पर कुछ खाने पीने को नहीं मिलेगा | सो हमनें बालको में ही आलू भुजिआ , नमकीन, बस्किट , क्रीम रोल ,सोन पपड़ी मतलब खाने का भरपूर सामान ले लिया और कॉफी पॉइंट
की तरफ चल दिए |
संदीप के पिताश्री बालको में ही कार्यरत थे और उसका पूरा बचपन यहीं बीता था ,
कालोनी में पहुँचते ही वो एकदम बचपन में चला
गया | बच्चों की तरह ब्यौहार
करने लगा | शायद सब को यह न समझ में
आया होगा क्यूंकि हमीं दोनों हेलमेट के अंदर से बात कर सकते थे | उसने अपना स्कूल दिखाया, दोस्तों के घर दिखाए
और खुद का घर जहाँ उसका बचपन बीता था | मैं सुन रहा था और सोच रहा था घर क्या है सिर्फ ईटा गारे से
बना मकान या और कुछ | नहीं घर है वहां
रहने की यादें , वहां बीते हुए
दुःख सुख के दिन , वहां खेले गए
खेलों की यादें दोस्तों का झगड़ा | तभी तो संदीप का
दर्द दिख रहा था बचपन की यादों का | खैर अब जंगल शुरू हुआ पर संदीप अभी बचपन में था
और बताया की इस जंगल में मैंने दोस्तों के साथ बहुत खेला है, तेदूं के फल खाए है और न जाने क्या क्या | आगे आया जंगल का बैरियर
तब संदीप बचपन से लौटा |
यकीन मानें वो २०-२५ की. मि. का जंगल का रास्ता बहुत मनोरम है | न तो ट्रैफिक का शोर है और न बाजार | बहुत शांति है, हरियाली है मतलब बहुत शानदार है | वो रास्ता पता नहीं चला
कैसे कट गया | एक दो जगह हमने फोटो खीचीं पर लगता था की यहीं
रुक जाये | प्रकर्ति इतनी सुन्दर है कि उसका पूर्ण वर्णन
शब्दों से नहीं किया जा सकता | हम पहुँच गए कॉफी पॉइंट और वहां से जो द्रश्य
दिखा उफ़ नहीं बता सकता | लगा की कहीं मुनार ता उत्तर पश्चिम के किसी
मनोरम जगह पहुँच गया हूँ | मेरे शब्दों से ज्यादा खूबसूरत है वो जगह | हम फोटो खींचने लगे | मजाक बनाने लगे एक दूसरे का, मस्ती करने लगे | हम वही रेस्ट हाउस के बरामदा में बैठ गए |
बरामदे में बैठ कर खूब बातें की, मस्ती की | वहीँ पर जंगल विभाग के एक गॉर्ड आए और हम लोगों से पूंछा कहाँ से आए हैं शायद
वो उनकी ड्यूटी होगी | बातचीत के बाद प्रवीण ने छत्तीसगढ़ी में उससे पूंछा की चाय या खाना मिलता है यहाँ | उसने न में सर हिलाया और बोला आप लोग अगर परमिशन ले कर आते तो अच्छा रहता पर मैं आप
लोगों के लिए तुलसी की चाय बना सकता हूँ | हमने बोला की पिलाओ तुलसी
की चाय | शायद इससे उसे कुछ कमाने का मौका मिल जाता होगा | यकीन मानों आप लोग उसकी तुलसी की चाय
बहुत अच्छी लगी | वो चाय में आ रही तुलसी की भीनी भीनी महक बहुत
अच्छी लगी |
हमनें तीन बजे चलने का तय किया पर शायद कोई जल्दी नहीं जाना चाहता था सो सभी
बोले आधा घंटा और रुकते है | मैनें कहा अगर
चाय एक बार और मिल जाए तो सब खुश हो गए | गॉर्ड साहब से फिर अनुरोध किया गया और
उन्होंने चाय दुबारा पिलाई हमें | वहां बहुत से लोग
आते जाते हैं पर हम सातों को आपस से ही फुर्सत नहीं मिली किसी से पूँछ पाखोर की |
सो वहां से चलने में बज गया चार और हमें
करीब की.मी. आना था | मुश्किल नहीं
था हमारे लिए सो हम चल दिए |
रचित और प्रवीण बहुत शैतान हैं बोले की आए कॉफी पॉइंट और जा रहे बिना कॉफी पिए
| पता नहीं यह मजाक था और
कुछ | सो हमनें कॉफी पीने का
निर्णय किया | हम वहीँ वापस
जयसवाल होटल पाली में रुके | वहां पर खोये की
जलेबी देख कर मन मंचल गया पर मैंने अपने आप पर काबू कर
लिया और कॉफ़ी का आर्डर दे दिया |
बहुत मस्त कॉफ़ी पिलाई
उसने हम लोगों को | हम लोगों ने दुबारा कॉफ़ी पी बैठे बैठे |
वहां कुमार रवि अब खुलने लगा था हम लोगों से | अब वो हमारे और करीब आ
गया था सो पान खा कर आया और बोला आप को कुछ खाना है | मैं हसने लगा और बोला की पान रतनपुर में खाएंगे | वो बोलै मैंने खा लिया है रतनपुर में भी खाऊंगा | उसके बोलने का लहजा इतना प्यारा था कि मैं उसे देखता रह गया | हम वहां से चले और रतनपुर में पान भी खाया (मेरे पिछले लेखों में वर्णन है )
वहां खड़े खड़े बातें करते रहे |
आखिर में हम का चले घर की ओर एक दूसरे से बिदा ले कर | मुझे सबेरे से पता नहीं क्यों कुछ खाली खाली सा लग रहा था | आज मुझे किसी ने टोंका नहीं था
किसी लिए | किसी ने पानी की बोतल
मेरी तरफ नहीं बढ़ाई थी अपने पीने के पहले | कुछ न कुछ तो था मैं
समझ नहीं पा रहा था | जब आखरी में घर की तरफ जा रहा था तब पता चला की रवि साहू मेरे साथ नहीं था | तो कौन करता ये सब , शायद मुझे रवि की आदत हो गई है | छोड़नी पड़ेगी मुझे ये आदत - शायद छूटे | पर मैंने उसे इस राइड में
बहुत याद किया |
मैं करीब आठ बजे घर पहुँच गया |
सभी के सकुशल पहुँचने की
सूचना भी मिल गई - खुश था मैं |
शायद सही ही है बड़ी ख़ुशी के चक्कर में हम छोटी छोटी ख़ुशी छोड़ देते हैं - क्या
यह सही है |
हाँ एक निवेदन है सभी पाठकों से कृपया घूमने जाए तो गन्दगी न करें , बोतल न फोड़ें कांच की कहीं भी |
दूसरे को अच्छा नहीं लगता
और बिना जाने किसी बददुआ लेते हैं |
To fallow - @ instagram - let_it_rain2017
@ Instagram - roopeshramakant
@ Youtube - https://m.youtube.com/user/982794489
Large raho..
ReplyDeleteसर,
ReplyDeleteमेरी आदत नहीं छूटेगी
shayad sahi kah rahe ho
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