मैं सुधर गया (भाग – २)

मैं सुधर गया (भाग – २)
अब था लंबा इंतजार बहुत लंबा| करने को कुछ ना था तो मैने होमवर्क तीन दिनो मे ही निपटा लिया| मन ना लगता था मेरा उन दिनो सोचता रहता की कब आयेगी ०२ जनवरी और स्कूल खुलेगा| पता नही किस उधेड़बुन में रहता था| अब सोचता हूँ तो अनायास ही हँसी जाती है|
खैर किसी तरह दिन कट ही गये और स्कूल खुल ही गया, मैं उत्साह के मारे परेशान और खुश था| जल्दी जल्दी शायद सबसे पहले स्कूल पहुँच गया| सभी का इंतजार करने लगा| दोस्तों से अभिवादन हो रहा था कैसे कटी छुट्टिया ये एक दूसरे को बता रहे थे| नया साल का मिलन था ही पर वो ना दिख रही थी जिसका इंतजार कर रहा था| अभी क्लास में मैं नही गया था दिल बैठा सा जा रहा था | हारा हुआ मैं क्लास की तरफ बढ़ा दोस्तों के साथ, जैसे ही क्लास मे प्रवेश किया देखता हूँ कि वो पहले चुकी है क्लास में| अचंभा सा रह गया मैं कुछ बोल नही पाया| पूरे सहपाठी थे क्लास में पर खुश तो हो ही गया था| वो पास आई और फूल देती हुई बोली कहाँ थे लेट आने की आदत गई नही, मैं क्या कहता देखता रह गया उसे|
वो बहुत खूबसूरत तो नही है, उसकी जन्नत की हूर से कल्पना भी नही की जा सकती पर यह दस दिनों में इतना परिवर्तन हो जायगा यकीन ना था| वो सीधी शादी सी दिखने वाली लड़की अचानक मॉडर्न हो गई थी, बाल काट चुके थे करीने से छोटे छोटे| बहुत खूबसूरत हो गई थी अब देखने का ही मन करता रहता था| शायद ये मेरा प्यार था या आकर्षण उस समय पता नही पर अगर आप मेरी नज़रो से देखे तो पता लग जायगा उसकी खूबसूरती का अंदाज|
क्लास के बीच में उसने इशारे से पूछा नाश्ता कर के आय हो की ऐसे ही भाग आए हो मैने भी इशारे में ही बताया की नही खाया है| उसने पूछा खाओगे तो मैने सिर हिला कर ना का इशारा किया|लंच में हम दोस्त पेड़ो के एक समूह के पास बैठते थे और खाना खाते थे, मैं तो टिफिन नही ले जाता था कभी, पर उन लोगों के साथ थोड़ा ख़ाता ज़रूर था| देखा कि वो आ रही है हमारी तरफ| मेरे दोस्त मज़ा लेने लगे कि अब जगह छोड़ना पड़ेगा यहाँ से| उन्हे मैने सब को रुकने का इशारा किया और वो आ कर बैठ गई मेरे पास अपना टिफिन लेकर और बोला चलो खाते हैं साथ में| मैं क्या कहता खाने लगा साथ में उसके|
अब यह सिलसिला ही चल निकला मेरा टिफिन वो लाने लगी रोज, हम साथ साथ खाते बाते करते| दोस्त अब हम दोनों का मज़ाक बनाते पता नही क्या के कहते उसके सामने ही, वो और मैं अब बस मुस्कुरा देते| कमीने थे ना वो अब उन लोगों की भाभी हो गई थी| कम्बक्त थे वो मेरे दोस्त| साथ जाना, पड़ाई की बात करना और साथ साथ खाना सब अच्छा चल रहा था| पर एक बात जो नई हुई वो यह थी कि मैं उसकी कोई बात काट नही पाता था वो जो कहती वही करता| ऐसा इसलिए नही कह रहा हूँ, मैं एक अच्छा खिलाड़ी था क्रिकेट का और स्कूल की तरफ से राँची जाना था मुझे खेलने| पहले तो वो खुश थी पर एक दिन बोली की एक हफ़्ता मैं कैसे रहूंगी, मेरा दिल बैठ सा गया| मैने उसको बिना बताए अपनी असमर्थता का आवेदन पी टी टीचर को दे दिया और बार बार समझाने के बाद भी तैयार ना हुआ खेलने जाने को|पी टी टीचर से मेरा काफ़ी दोस्ताना लहज़ा था पर पता नही क्यूँ उन्होने उसे बुलाया और बोले की स्कूल की बात है उसे बोलो राँची खेलने जाए| उसे धक्का सा लगा कि मैं नही जा रहा हूँ तो मुझपर गुस्सा हो कर बोली क्यों नही जा रहे हो| मैने कहा तुम ही तो बोली थी कैसे रहोगी- कुछ ना बोल पाई वो| खैर उसने मुझे जाने के लिए राज़ी कर दिया और मैं गया खेलने भी|
अब हम दोनों की केमिस्ट्री बहुत मैच करने लगी थी पर मैं पढ़ाई ना कर पता था उसके बराबर| शैतान था पर अब बहुत कम हो गई थी शैतानिया, सारे टीचर कहते सुधर गया है मैं समझ ना पाता था कि मैं तो वैसा ही हूँ| हाँ पर दोस्त बढ़ से गये थे और इज़्ज़त भी देने लगे थे| लड़कियो से भी बात करने में अब मैं हिचकता नही था, सभी के साथ मेरा मित्रों जैसा व्योहार हो गया था | सुधर तो मैं गया था हाहहहहः|
परीक्षा आने वाली थी, हमारी प्री बोर्ड परीक्षा होने वाली थी बहुत कम दिन शेष थे| एक दिन उसने कहा कि स्कूल बंक करें, मैं हैरान था क्या कह रही है वो| उसने कहा घर से निकलना पर स्कूल ना जाना आज कहीं चलेंगे| मैं अवाक था पागल हो गई है ये, परीक्षा सिर पर है और ये स्कूल बॅंक करने की बात कह रही है| मैं मान गया और दूसरे दिन साइकल ले कर अपनी अपनी हम दोनों गायब| हम दोनों गए पास ही स्थित रोज गार्डेन और थोड़ा इधर उधर घूमने के बाद एक पेड़ के नीचे बैठ गए|अंदर से डर लग रहा था कि स्कूल ड्रेस में हैं कोई क्या कहेगा पर वो विश्वास से भरपूर थी कोई डर या असमंजस में नही थी| खूब बातें हुई हमारे बीच पता नही क्या क्या नादानी भरी बातें ,हँसी मज़ाक| मैं उसे देखता तो मुस्कुरा देती और सिर्फ़ कहती आगे क्या करोगे| समझ ना आया ऐसा क्यूँ कहती थी| खैर हम स्कूल  छूटने के समय अपने अपने घर पहुँच गए| और जैसा निर्णय हुआ था पड़ाई में जुट गए|मिलना रोज होता बातें होती पर मिलना स्कूल में ही हो पाता था अलग से नही, जहाँ हम दोनो ही केवल रहें| सो हम स्कूल बॅंक कर के कहीं चले जाते आसपास और बातें करते|

परीक्षा समाप्त हो गई अब उसे गाँव जाना था और मुझे भी इलाहाबाद| बेचैनी फिर हाबी थी दोनों पर इस बार हम लोग बताते थे एक दूसरे को और मैं कहता ना रहा जाएगा अब|
हमने प्लान बनाया कि १२वीं बोर्ड की परीक्षा है सो हम लोग जल्दी आ जाएँगे वापस और हमनें अपने अपने घर में बातें की| उसके पिताजी तो मान गए और वो वापस जल्दी आने को राज़ी हो गए पर मेरे घर वाले ठहरे किसान ना समझे पर जानता था कि माँ को पटा लूँ तो ठीक रहेगा | जाने में कुछ दिन थे सो हो जायगा यह सोच कर आगे देखा जाएगा मैनें वादा कर लिया|
अब जाने का समय नज़दीक था बेचैनी थी बहुत शब्दों से नही बताया जा सकता ये महसूस करने की बात है| मेरा आना जाना हो गया था उसके घर और वो भी जाती थी मेरे घर| बाकी तो ठीक था पर उसके पापा को पसंद ना था और हम लोग तो पक्के देहाती हैं, सो किसे पसंद आता| वो भी तो पागल थी मेरे छोटे भाई को अपने घर ले कर चली जाती और तीन तीन दिन वो वहीं रहता, अरे एक मे पढ़ता था मेरा भाई| दोनों बहुत खेलते साथ में और उसका भी मन ना लगता था उसके बगैर| मेरी माँ मज़ाक भी करती थी कि गया है अपनी नई माँ के पास- सच बहुत याद आता है वो दिन| पर हमारे परिवारों में किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं आती हम दोनों के सामने, शायद बच्चा समझते थे लोग हम दोनों को|
खैर वो दिन भी गया उसे गोरखपुर जाना था और मुझे दूसरे दिन इलाहाबाद| खूब रोना आता था शायद बचपना था या कुछ पता नही| मैं उसे छोड़ने गया पर एक अजनबी की तरह पर उसकी उदासी याद है|दूसरे दिन मैं अनमने मन से चला गया| लगभग ३० दिन तक सिर्फ़ यादें|
 जैसा पहले निर्णय हुआ था हम दोनों का वो गई और मैने भी पढ़ाई का बहाना बना कर जाने का फ़ैसला किया और काफ़ी परेशानी के बाद पहुँच भी गया| पर मेरी माताजी नें हमारे एक पड़ोसी के घर मेरे खाने पीने का इंतज़ाम करवा दिया सो इसकी भी अब चिंता नही थी मेरे माँ बाप को| हम पहुँचे और मिले, अचानक वो अब बड़ी लगने लगी थी मुझे शायद अब यौवन में प्रवेश कर रही थी| उसके गाल और हँसना कभी नही भूल सकता| बहुत खूबसूरत थी वो|अब हम शाम को एक साथ टहलने जाते अपने स्कूल के सामने, वो सड़क पूरी तरह से खाली रहती| मैने दो दिन तो दूबे जी के घर खाना खाया फिर मेरा खाना उसके घर से आने लगा| यही ग़लती हुई मुझसे जो आगे चल कर बड़े रूप में परिवर्तित हो गई| २० दिन पता नही कैसे निकल गए| कभी कभी वो मेरे घर आ कर कुछ बना देती थी| अचानक एका एक मेरी माँ और भाई बहन आ गए नियत समय से लगभग चार दिन पहले| मैं खुश था सब ठीक था पर माँ माँ होती है| दूसरे दिन माँ ने पूछा किचन में बर्तन पड़े थे मैं जब आई, तुम खाना बनाते थे तो मैने झूठ बोल दिया हां बनाता था| पर शाम को और पूछताछ हुई|पूछा गया तुम केवल दो केवल दो दिन ही दुबे जी के घर खाना खाए और वो टिफिन किसका है जो घर में है| मैं कुछ बोल ना सका | मेरी माँ है ज़रूर थोड़ा कम पढ़ी लिखी पर समझदार बहुत हैं उन्होने हमारी भाषा में बोला कि कह दो उससे डाइनिंग रूम से किचॅन का रास्ता बहुत लंबा है उससे ना हो पाएगा| और मैने अभी अपने किचन में जाने का अधिकार किसी को नही दिया है| थोड़ा बिगड़ी भीं| मैं क्या करता सारी बात तत्काल उसे बता दी| मैं अवाक रह गया उसका जवाब सुन कर और समझ नही पाया उस समय पर अब समझ आता है|उसने कहा जा के कह दो कि रास्ता कितना भी लंबा हो अधिकार भले ना हो मेरा पर यह रास्ता मैं ही तय करूँगी और अधिकार भी मेरा होगा| एक अजीब सा विस्वास था उसकी बातों में|

कभी कभी मुझे लगता कि ज़रूर मुझसे बहुत बड़ी होगी जो इतनी विस्वास भारी बातें कर लेती थी| बात ही नही करती उसपे अमल भी कर लेती थी| खैर चलने लगी जिंदगी आराम से हम दोनों की| वही रोजाना का नियम साथ रहना,खाना खाना, आना जाना खूब बातें करना पता ही नही चलता समय का जब वो साथ होती तो| पर अब शायद लोगों की खटकने लगा था|
आपको पता है घर वाले नही जान पाते उन्हे बाहर वाले बताते है कि आप का बच्चा बड़ा हो गया है और इस दोस्ती को लोग हरकत का नाम दे देते है| हमारे साथ  भी ऐसा ही हुआ| घर पर सीधे सीधे तो नही पर डाट ज़रूर पड़ती|
एक बार का किस्सा याद आता है मुझे प्रिन्सिपल ऑफीस में बुलाया गया और उसे भी| बहुत समझाया गया हम दोनो को| शायद वो अपना कर्तब्य कर रहे थे और हम दोनो सिर नीचे कर के सुन रहे थे| सहसा हमारे इंग्लीश टीचर जोश में आकर चिल्लाने लगे और लगा मारेंगे मुझे| वो पागल दौड़ के मेरे पीछे खड़ी हो गई और शर्ट पकड़ ली पीछे से| सर जी बोले सामने आओ पर वो मेरे पीछे ही खड़ी रही|मैं थोड़ा सुधर ज़रूर गया था पर इतना नही की उसे कोई कुछ कहे| मुझे उस समय यही सही लगा| मैने सब को देखा और केवल इतना कहा ये सब नाटक किस लिए,आगे नाटक ना हो ऐसा क्या करूँ|प्रिन्सिपल सर बोले बोर्ड है पढाई करो|मैने पढाई करने का वादा कर उसे साथ लिया और बाहर आ गया|बाहर आते ही गुस्से से उससे पूछा पीछे क्यूँ खड़ी हो गई तो उसने जो कहा वाकई - मैं तुम्हारी ज़िम्मेदारी हूँ और मैं कुछ नही जानती| तुम जानो बस और हाथ पकड़ कर बोली चलो घर छोड़ो आज की पड़ाई ख़त्म| मैं बुत सा बन गया यह सुन कर कि ये सोचती क्या है मुझको,क्या अधिकार है मेरा इस पर और ये किस अधिकार से मुझे ये अधिकार देती है| और किस अधिकार से मुझ पर अधिकार बताती है
हमारी पढाई चल रही थी | बीच में सब होता था कालेज बॅंक कर के घूमना, मस्ती करना, नाचना गाना और साइकल से घूमना अच्छा था, याद आता है आज तक| सहसा एहसास हुआ कि हमारी परीक्षा आने वाली है, हम सबको बोर्ड पेपर देना था| खुशी की बात यह थी की अब हम दोनों कहीं अलग रहेंगे घर से जहाँ कोई डाटेंगा नही, मज़ाक नही बनायगा कोई| खूब सपने देखते और पढाई करते| सही में वो ही पड़ती और मैं सपने देखता|
अब आलम यह था दोस्तों कि वो जो और जितना कहती उतना और वही करता मैं| पता नही क्या था जैसे कोई जादू या सम्होहन| मैं आज़ाद ही नही होना चाहता था बस उसकी एक बात ना मानता पढने वाली|
निर्णय हुआ रात में पढ़ना है अपने अपने घर और मैने भी हामी भर दी| पर पहले दिन ही सो गया करीब ११:०० बजे, दूसरे दिन उसे बताया| उसने खूब डाटा और बोला तुम सुबह तीन बजे घर आना चाय पीने| बस फिर क्या था मिलने के चक्कर में मैं रात भर जागा और शायद पढ़ा भी| रात करीब दो बजे ही निकल गया उससे मिलने, थोड़ा डर भी रहा था कि क्या होगा पर एक मित्र को साथ ले लिया था | उसके घर के पास पहुँचते ही मन किया ना जाउ पर सोचते सोचते पहुँच गया| जैसे ही पहुँचा उसकी बाउंड्री पर दो कप और केटली में चाय रखी थी| मैने केटली खोल कर चाय ली और दोस्त को भी दी| चाय पी कर चुपचाप आ गए घर| अब रोज का नियम बन गया पढ़ाई करो और रात दो बजे चाय पीने जाओ, कभी कभी कुछ खाने को भी मिलता| याद आता है वो सब|
बहरहाल इन्ही सब के बीच हमारी परीक्षा होने लगी| परीक्षा के बाद हम दोनों बैठ कर सपने संजोते और बातें करते| मुझे याद है आखरी परीक्षा के दिन हम दोनों बहुत खुश थे की आज परीक्षा का आखरी दिन है और करीब १५ दिन बिल्कुल फ्री है|पर अंदर ही अंदर एक भय उत्पन्न होने लगा की आगे क्या होगा| कहाँ दाखिला होगा कैसे होगा| सोचते और बातें करते पर उसमें बला का विस्वास था कहती तुम चिंता मत करो सही होगा सब|और मज़ाक भी करती क्या करना है तुम्हे कमाना है और मुझे घर संभालना है|

हमारा घूमना टहलाना जारी था लोगों का बातें करना जारी था, घर वालों का डाटना जारी था| उसके पिताजी कभी मुझसे बात ना करते और मेरे पिताजी इस बाबत् मुझसे कभी कोई बात ना करते| मन अंदर से थोड़ा भयभीत भी होता कि आगे क्या होगा पर अब मैं शायद थोड़ा नही काफ़ी सुधर चुका था या यूँ कहो उसका हो चुका था| वो जैसा चाहती मुझे नचाती और कहती देखो अब लोग तुम्हे एक शैतान बच्चा नही कहते अब लोग तुम्हे मेरा कहते है| शायद सच भी यही था

Comments

  1. But हम सुधरेंगे नही

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    1. सुधर जाओ नहीं तो मेरी तरह ही भोगोगे

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