मैं सुधर गया (भाग – १)
आप सभी को लगता होगा की गाहेबगाहे मैं यह कहता रहता हूँ कि याद आती है वो| शायद आप लोग जिज्ञासा भी रखते होंगे या क्रोधित भी होते होंगे कि क्या मज़ाक है इस आदमी का जो कहता है या लिखता है| तो जनाब मैं आप सभी को बताने से डरता हूँ कि सच है ये ,और सत् प्रतिसत सच है | अगर खोल दिया दिल का राज तो यकीन मानिए कई पर्दे उठ जाएँगे|
पर अब मान करता है कि यह हक़ीकत आप लोगो को जान लेना चाहिए , शायद कुछ हमदर्द का दर्द बट जाए और सुकून आ जाए|
दोस्तों बात शरू होती है मेरे बचपन छोड़ युवा बनने के मध्य में| मैं एक बहुत ही शैतान, अल्हड़,
और गैर ज़िम्मेदार तरीके का विद्यार्थी था, चूँकि मैं सी बी एस ई से दसवी पास कर चुका था और ११ की बिझान संकाए में पहुँच चुका था| पर मेरे कोई काम साइन्स विद्यार्थी के ना थे, वैसे सेंट्रल स्कूल में साइन्स के विद्यार्थी काफ़ी अनुसासित होते है पर मैं ना था और ये मजाक नही है|
मैं स्कूल तो रोज जाता था पर पढ़ाई ना बाबा ना ही थी और तो और खूब घूमना, शैतानी करना और खेलना बस यही काम| उसी समय शायद मंडल कमीशन का भी कुछ प्रकरण चल रहा था सो स्कूल में भी पड़ाई ना के बराबर थी| कहने का तात्पर्य यह है की आप मुझे आवारा नही कह सकते पर एक बदमाश लड़के की संज्ञा तो दी ही सकती है|
जब हमारा ११वी का शेसन शरू हो रहा था तो कुछ बच्चे दूसरे स्कूल से भी दाखिला लिए थे| यह मुझे याद नही कितने और किसने दाखिला लिया था| पर उस समय ना किसी से मतलब था ना ही किसी से कोई सरोकार|
लगभग बीच शेसन में या यूँ कहे शायद का माह सितम्बर रहा होगा, हमारे विद्यालय में पटना से कोई टीम मोआयना करने आने वाली थी वो भी तीन दिनों के लिए|सारे स्कूल के कर्मचारी, अध्यापक गण और विद्यार्थी तैयारी में लगे थे पर मुझे उससे कोई सरोकार ना था| हमारी क्लास टीचर ने मुझे बुला कर कहा कि मैं उन टीन दिनो तक स्कूल ना आऊं| दिल से बता रहा हूँ मैं बहुत लज्जित हुआ उनके सामने और क्रोधित भी| पर मैं कुछ कह ना सका क्यूकी हमारी क्लास टीचर मुझे कुछ ज्यदा ही स्नेह प्रदान करती थी और मैं उनकी कोई बात काट नही पता था| हाँ अपने क्रोध पर काबू तो कर लिया पर उनकी डबडबाई आँखे देख कर अच्छा ना लगा, मैने पूँछ लिया क्या हुआ आप दुखी क्यूँ हो, वो नही बताना चाहती थीं पर मैं बहुत जिद्दी था या हूँ| ज़िद पकड़ ली कि बताओ तो वो बोली तू नही समझता| तेरा दिमाग अच्छा है और तू आगे कुछ कर सकता है, एक टीचर ये सपना हर साल देखता है कि फला लड़का या लड़की उसका नाम रौशन करेगा| और मैं वो सपना तुझमे देखती हूँ पर तू समझता ही नही| मैने अब और ज़िद पकड़ ली कि अब ज़रूर आऊंगा मोआयना वाले दिनो में चाहे जो करना पड़े| मुझे बोला गया कि अगर मै अपना सारा कार्य कर लूँ मतलब क्लासवर्क, होमवर्क, प्रॅक्टिकल की सभी कापी तैयार कर लूँ तो आ सकता हूँ| पर मेरी शैतानिया मेरा पीछा ना छोड़ने वाली थी सो मेरे उपर मेड्म का विस्वास ना था और वो थीं बहुत मजबूर|
मित्रों क्या कभी कभी टीचर भी स्टूडेंट की ज़िद के सामने मजबूर हो सकता है ये आज मैं जान पाता हूँ शायद वो कोई नाता रहा होगा या पता नही मुझे पर वो मेरे लिए बहुत ही सुखद एहसास है उनका सानिध्य ही धन्य कर देता है मुझे|
खैर मैडम ने मुझे और मेरी ही क्लास की एक क्लास की एक लड़की को मेरे कार्य को पूर्ण करने पर लगाया और यकीन माने सारे काम मतलब लिखाई का काम हम लोगों ने लगभग पूर्ण ही कर लिया | वो बेचारी मेरी कॉपियां दिन भर लिखती और मैं तो मैं था तोड़ा लिखता और इधर उधर|वो मुझ पर गुस्सा नही करती थी पर उसका हाव भाव देख कर एहसास होता था उसके क्रोध का|यहीं पर मेरी प्रॅक्टिकल कॉपी बनाते वक़्त उसे बाइयालजी की प्रॅक्टिकल की क्लास में जाना था उसने मुझे कहा कि तुम अपना ये काम तो कर लो पर मैने माना कर दिया और बोला मैडम ने तुम्हे बोला है तुम करो|उसका तमतमाता चेहरा देख कर थोडा डर गया और हँसी भी आ गई|पर मेरी वो नादानी मुझ पर इतनी भारी पड़ेगी यह जनता ना था मैं| बेचारी ने कुछ नही कहा और प्रॅक्टिकल क्लास छोड़ के मेरा काम करने लगी रही चुप चाप| केवल इतना कहा अब यहाँ मत आना और मैं गया भी नही उसके पास| शायद उस दिन उसने लंच भी नही किया पर हाँ मेरा सारा काम ख़तम कर के मेरी सारी कॉपियां मैडम को दे दी और बोली अपने लाड़ले को दे दीजिए| आप तो उसे कुछ कहेंगी नही,आप उसे नही सुधार सकती|शायद मैडम बहुत जानकार, समझदार थीं, उन्होने कुछ नही कहा, उसे जाने को कहा बस|
अब डाट खाने की बारी थी, बुलाया खूब डाटा, बोला वो तुम्हारा काम करे और तुम घूमो,खेलो अच्छा है तुम नही सुधार सकते फिर मुझे पूरी बातें बताई| मैने भी कह दिया उसी ने कहा था कि यहाँ मत आना सो नही आया|खैर जो होना था हुआ, मोअयाना हुआ और मैने भी अनुसासित बच्चे की तारह भाग लिया सभी कार्यक्रमो में|
दिन बीतने लगे पर ज्यदा दिन नही मैं फिर पिछड़ने लगा अपने लिखाई के कार्यक्रम में| फिर मैडम के सूझाव पर मैने उसी से कापी माँगी एक दिन के लिए|पर इस बार अच्छा ना हुआ उसने कहा घर नही ले जा सकते कापी यहाँ लिखना है तो ले लो|काफ़ी असहज सा महसूस किया मैने की कैसे मना कर दिया मुझे|दोस्त बहुत कम्बक्त होते हैं सब हंस रहे थे मुझ पर| वैसे मैं बातुनी हूँ पर लडकियो से बात में उस समय असहज महसूस करता था, तो लगा बेज्जती हो गई मेरी| लज्जा भी आई अपने उपर|मैने उससे मदद ना लेने का फ़ैसला किया पर मेरी मदद करता भी तो कौन, और तो और उसकी सारी कापी और किताबें देख कर लगता था कि वो दिन भर कापी किताब ही सहेजती है, बहुत करीने से रखती थी|थोड़ी देर बाद उसने मुझसे कहा कि कल मैं उसकी कॉपी ले जा सकता हूँ घर|ना चाहते हुए भी मैने हामी भर दी| दूसरे दिन मैं इंतजार करता रहा कि कब वो कॉपी दे और मैं घर ले जा कर अपना काम करूँ| पर पुर दिन उसने कॉपी ना दी मुझे, खीज सा गया मैं| खैर आखरी घंटे में उसने मुझे अपनी दो कॉपी या कहें रिजिस्टर दिए और कहा कल ला देना भूलना नही|
अब काम पे जुटना था मुझे और मैं लिखना भी चाहता था, पर जैसे ही रिजिस्टर खोला एक मेरे नाम का पत्र मिला, काफ़ी लंबा मुझे सुधारने के बाबत्|आप लोगों को सच बता रहा हूँ कई बार पढ़ा था मैने वो खत| अपना कार्य को पूरा तो नही कर पाया पर उस पत्र के पिछले हिस्से में मैने लिखा हम नही सुधरेंगे और चुपचाप पत्र रिजिस्टर में रख कर उसे दे दिया| उसने कोई प्रतिक्रिया नही की, ना ही रिजिस्टर देखा और ना ही मुझे पर मैं अंदर ही अंदर थोड़ा डरा हुआ था और रोमांचित भी कि अगर वो गुस्सा भी होगी तो कहेगी क्या| छुट्टी हुई हम लोग अपने अपने घर चले गये पर उस पुर दिन मैं उसी के बारे में सोचता रहा, शायद काफ़ी रात तक|
सुबह हुई मैं परेशान था कि क्या हुआ होगा क्या सोच होगा उसने मेरे बारें में|जल्दी जल्दी तैयार होकर स्कूल चल दिया पर वहां सब नॉर्मल| मैं अपनी नियत मेज कुर्सी पर बैठ गया और उसे निहारने लगा| दिल मे घंटी नही घंटा बज रहा था और डर रहा था कि कहीं किसी या मैडम को ना बता दे वो, शैतान तो था ही मैं और बदनाम पूरे स्कूल में|हमारे मेज पर एक पर्ची चिपकी रहती थी नाम और रूल नंबर की| सहसा मेरी निगाह उस पर पड़ी लिखा था सुधार के मानूँगी| मेरी जान में जान आई की अभी युद्ध होगा पर किसी को मालूम नही चलेगा| स्कूल से जाते वक़्त मैने अपनी मेज पर चॉक से लिख दिया नही सुधुरँगा और चला गया घर| इसका मैं रिएक्शन देखना चाहता था और परेशान भी था कि क्या होगा आगे| सुबह आया तो ब्लॅक बोर्ड पर लिखा था सुधार जाओ नही तो अच्छा नही होगा| पता नही कब आ के लिखा होगा उसने क्यूंकी हम लोग आखरी मे क्लास जाते थे|सच अब मज़ा सा आने लगा था उससे मूक लड़ाई लड़ने में|अब मैं बात करना चाहता था उससे शायद उधर भी यही स्थिति थी, पर सुरुआत तो मुझे ही करनी थी|
मैने दो दिन बाद फिर रिजिस्टर माँगा उससे पर इस बार थोड़ा अधिकार से| उसने कहा कि क्यूँ दूं रिजिस्टर तुम्हे काम धाम तो करना नही है बस मस्ती करो, अनायास ही मेरे मुह से निकल गया दे दो रिजिस्टर नही तो तुम्ही को मेरा छूटा हुआ लिखना पड़ेगा| उसने रिजिस्टर की तरफ़ इशारा किया की ले लो|अब यह नियम सा बन गया कि पहले वो लिखे फिर मैं उसको देख कर कॉपी करूँ| खास बातचीत ना हुई हम में लगभग एक महीने तक|
मैं स्कूल आता भले टाइम पे था पर जाता सभी की बिदा कर के, मेरे कुछ दोस्त दूर से आते थे पहले उन्हे विदा
करता फिर जाता, पास में था ना घर
लगभग आधा क़ी. मी.| एक दिन मैं
कॉरिडोर में खड़ा बातें कर रहा था और देखा की वो बैठी है क्लास में| थोड़ा अचंभित हुआ और जिग्यासित भी पर मैंने
इंतजार करने का निर्णय किया| मेरे दोनो दोस्तों
के कहा जा के पूछ क्या हुआ| हिम्मत कर के
मैने पूछा तो जवाब मिला कुछ नही तुम्हारे साथ जाना है आज, मैने कहा दूसरी तरफ है घर कैसे जाओगी| बड़े अधिकार से उसने कहा तुम घूम कर चले जाना,
मैं मना नही कर सका और चल दिए हम दोनो| मैं आगे और वो पीछे पीछे, कोई बात ना हुई हममें| उसके घर के पास पहुँच कर मैने सिर से इशारा किया की ठीक है,
उसने भी सिर हिला कर ठीक होने का इशारा किया और
चली गई अपने घर|
मेरा मन बहू उत्साहित था और रोमांचित भी समझ नही आ रहा था क्या करूँ किसे
बताऊँ| सच रात भर मैं सो नही सका
उस दिन पड़ना लिखना तो दूर|दूसरे दिन भी वही
हुआ मैं चुपचाप आगे चलता और वो पीछे पीछे, कई दिनो बात ना हुई| एक दिन मैने यह
सिलसिला तोड़ा, बोला प्यास लगी
है उसने तत्काल अपनी वॉटर बॉटल खोल कर सामने कर दी, फिर कुछ बाते हुई| खूब बाते हुई इधर की उधर की और ना जाने क्या क्या|मेरे दोस्त अब मेरा मज़ाक बनाने लगे तो समझा की लोग क्या कहते होंगे|मैने उससे हिम्मत कर के कहा की सब मज़ाक करते है तो उसने
कहा सही तो कहते हैं|अब साथ साथ
जाएँगे तो लोग कहेंगे ही| मैं तोड़ा गुस्सा
हुआ की कल से मैं नही जाऊँगा तुम्हारे साथ तो बोली मैं तुम्हारे घर होते हुए नही
जाऊंगी|तुम्ही चलो मेरे साथ लोगो
को कहने दो| मेरी हिम्मत
दोगुनी हो गई और यह सिलसिला चल निकला| पता ही नही चला कि कब मैं उससे सारी बातें करने लगा और उसकी सुनने लगा|अब हम दोनों काफ़ी कुछ जानने लगे थे एक दूसरे
को पर दोस्त की तरह|
सेंट्रल स्कूल में सर्दियो की छुट्टी होती है दिसंबर के आखरी दिनों में और वो
आने वाली थी| एक अजीब सी
बेचैनी रहने लगी मुझे कुछ दिनों से, पता नही क्यूँ बहुत परेशान रहने लगा मैं यह सोंच कर १० दिनों तक अब ना मिल
पाऊँगा| मैं अपने को कमजोर नही
दिखाना चाहता सो उससे कुछ कहता नही था पर अंदर ही अंदर भूचाल सा आ गया था| क्या यह प्यार था या आकर्षण पता नही कुछ समझ
नही आ रहा था|
छुट्टी होने का दिन भी नज़दीक आ रहा था, उसे अपने ग्रहग्राम गोरखपुर जाना था छुट्टीओ में पर वो बहुत सहज थी तो मैं सोचता की उसे कोई फ़र्क नही पड़ रहा है और मैं, गुस्सा भी आता था उस पर लेकिन मैं शांत रहता था| छुट्टी के पहले आखरी दिन स्कूल से घर जाने से पहले मैने उससे कहा मैं बाथरूम से आता हूँ| चुकीं हम चारों लगभग आखरी होते जाने वाले तो खाली सा रहता था स्कूल| मैं चला गया बाथरूम और रोने लगा छुपकर| आँसू रुक ही नही रहे थे| अपने आप को संभाल कर मैं बाहर निकला ही था तो देखा तो दरवाजे पर वो खड़ी है| देखते ही बोली क्यूँ रो रहे हो, मैने कुछ नही बोला चुप रहा| पर हक़ीकत में वो रो रही थी, आँखो मे आँसू थे ढेर सारे| कुछ बोली नही हाथ पकड़ के बोली चलो घर छोड़ो आज शाम को जाना है गाँव| मैने कोई प्रतिक्रिया नही की और चल दिया उसके साथ धीरे धीरे| सोंच रहा था आज रास्ता ख़तम ही ना हो शायद वो भी यही चाहती थी रुक जाती थी बार बार| पता नही कितनी हिदायते दे डाली मुझे पर मुझे कुछ समझ नही आया| घर के पास पहुँच कर उसने कहा कि इंतजार करोगे ना मेरा और मैं सिर्फ़ सिर हिला के हाँ का इशारा ही कर पाया|शायद सुधरने लगा था मै उसके लिए |
Lovely 1
ReplyDeleteBut hum सुधरेंगे नही
सुधर जाओ नहीं तो मेरी तरह ही भोगोगे
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