बच्चे करते ही क्या हैं

बच्चे करते ही क्या हैं
कल की ही तो बात है मैं बैठा सोच रहा था कि बहुत काम है, थक जाता हूँ आज कल| शायद उम्र के ४० बसंत पार करने के बाद ऐसा सभी को लगता होगा| बात यह नही है की मुझमें बचपना नही है पर बची केवल चंचलता है वो भी स्वाभाव से पर वो शक्ति शायद नही है|
मैं ऑफीस से आ कर बैठा ही था कि हमारी श्रीमती जी ने अचानक शिकायते करना सुरू कर दिया कि देखो आपका लड़का कुछ नही करता ना पढ़ाई करता है बस दिन भर टी वी देखता है और कुछ नही(मेरा बेटा क्लास ८ का छात्र है)|
मैं उसे देखता रहा कुछ बोल नही पाया| शायद मानसिक थकान थी या इन लोगो से दूर रहने के कारण कुछ ना बोला|
थोड़ी देर ही बीते होंगे कि श्रीमती जी नें कहा जाओ पापा के जूते आलमरी में रख दो और बिना कोई प्रतिक्रिया के मेरे बेटे नें जूते उठाए और रखने चला गया | जैसे ही आया फिर आदेश मिला के कपड़े टाँग दो दरवाजे के पीछे आदेश का पालन हुआ, अगला आदेश हुआ पापा के लिए पानी लेते आना और फ्रीड्ज में शाही टोस्ट रखा है वो भी लाना| उस आदेश का भी पालन हुआ | मैने खाया पानी पिया तो बेटे ने पूछा और पानी तो नही चाहिए मैने हाँ में सिर हिला दिया उसने एक गिलास और पानी ला के दिया|
थोड़ा आराम करने के बाद सब अपने अपने कामों में व्यस्त हो गए| श्रीमती जी किचन में और बेटा शायद कुछ कर रहा था, मैं अकले बैठा मोबाइल देख रहा था| सहसा मेरे दीमाक में ख़याल आया सही बच्चे करते ही क्या हैं| सिर्फ़ पढ़ाई, खेलकूद, टी वी और क्या|
अब दीमाक नें शायद ज्यदा सोचना सुरू कर दिया कि क्यूँ हम ये कह देते हैं कि बच्चे करते ही क्या हैं| सरकारें भी चाइल्ड लेबर पर क़ानून बनाती हैं कि १४ साल की उम्र के पहले कोई बच्चा काम नही कर सकता| हम भी ध्यान नही दे पाते| अगर कभी ख्याल आ भी जाए बस यह कह के मन शांत कर लेते हैं कि सीखने की उम्र है ये| पर क्या ये सही है...................

आप के घर में भी ऐसा ही होता होगा मेरा पक्का यकीन है ऐसा| सुबह से शाम तक का कभी विस्लेशण करेंगे तो एहसास होगा कि बच्चे करते ही क्या हैं|
सुबह हो तो पापा की पूरी मदद चाहे रुमाल देना हो, चाहे माँ के द्वारा टिफिन लगाने के बाद टिफिन आप के हाथ में पकड़ाना या आप के आने के बाद पानी का गिलास पकड़ के खड़े रहना|
बच्चे चाहे जहाँ रहे एक कान माँ बाप पर लगा रहता है बस आदेश मिला और पालन हुआ| साइकल चला के आया तो आदेश सही से सही जगह खड़ी करो साइकल, जूते सही जगह रखो, स्कूल से आ कर अपने कपड़े सही जगह रखो| बेटा थोड़ा लाइट जला दो,बेटा थोड़ा मच्छर भागने वाला कायिल ला दो, माचिस ला दो- कहने का मतलब ये है की अगर गिनती करने लगूँ तो अपना कार्य छोटा लगने लगेगा|
और हाँ सबसे बड़ी बात किसी बात की चिंता नही बच्चों को सब निर्विकार भाव से आदेश का पालन| और उपर से अंदर बैठा डर कि माँ बाप कहीं गुस्सा तो नही हो जाएँगे|
शायद ये हमारी परंपरा या परिपाटी है जो चली आ रही है और हम में इतना दम नही कि इसे हम आसानी से तोड़ सकें पर क्या यह सच नही है कि हमें एक मूक सहयोगी मिल जाता है हमारे बच्चे के रूप में| सोचने का विषय हो सकता है ये या सुधरने का ?..................
अगर बच्चा थोड़ा बड़ा हो गया है तो काम उसी हिसाब से बदल जाता है| गीले कपड़े डालने से सूखे कपड़े उठाने तक, सब्जी लाने से लेकर छोटों को स्कूल पहुचाने तक| शायद ये एक अंतहीन संस्थान है और सब इसी के साथ जीते हैं| मैं या आप सभी ने ऐसे ही अपना बचपन पार किया है और आगे भी आने वाली पीढ़ी अपना बचपन पार करेगी| तो फिर हम बड़े होते ही ऐसा क्यूँ कहते हैं कि बच्चे करते ही क्या हैं|


मेरे एहसास तो यही कहते हैं और आप का????????

Comments

  1. बहुत ही अच्छा एहसास है सर सच मे बच्चे क्या क्या नहीं कर जाते हैं ll

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  2. I started enjoying your every Ahsaas. Once again well thought. After your every story no it's "ahsaas" your successfully creat complete picture, or scene I can say, in front. I started admiring your every write sir.

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