वो बेहतरीन दिन

वो बेहतरीन दिन
(पचमढ़ी यात्रा के एक साल)
                आज जब पलटकर देखता हूँ, बीते हुए दिनों की तो कहीं न कहीं पचमढ़ी यात्रा के दिनों पे सोच आकर ठहर जाती है| ना चाहते हुए भी मन खुश हो जाता है और लबों पर अनायास ही हंसी आ जाती है| शायद वो दिन ही ऐसे थे जो मैंने और मेरे चार साथियों ने एक साथ बिताये| नहीं वो दिन नहीं वो बेहतरीन हसीन दिन...!
                तो मित्रों प्रस्तावना ये है कि मैं बैठा कहीं घूमने का सोच रहा था और रवि आ गया मेरे पास, उसके शब्द याद है कि सर कहाँ हो पचमढ़ी गए हो क्या? बस फिर क्या था हम दोनों ही थोडा सा घुमक्कड़ है और मूडी भी, लग गए पचमढ़ी के रास्ते, खाने, होटल और खर्चे की प्लानिंग में...| दो दिन हम लोग व्यावहारिक बातें करते रहे, पर अब पचमढ़ी यात्रा हमारे दिमाग से दिल में उतरने लगी थी| अब हम दोनों को यह तय करना था कि कब और किस साधन से चलना है? और सब से ज़रूरी कौन-कौन...हा हा हा...!
                अब शुरू हुई हमारी एक खोज अपने पचमढ़ी यात्रा के साथियों की| जैसा कि पहले भी हम लोग छोटी-बड़ी यात्राएं करते आये थे, तो ये तो तय ही था कि हम लोग मोटर साईकिल से ही जायेंगे पर मेरे मन में थोड़ा संशय था क्योंकि सच बता रहा हूँ कि मेरे पास उस समय नैन्सी (मेरी Thunderbird) नहीं थी, इसलिए बिना दिखाए वाला संकोच मुझ पर हावी था.|पता नहीं मेरे साथी ये समझ पाए कि नहीं, पर उस समय मुझे लगता है कि नहीं समझ पाए होंगे| अपने ग्रुप सोल ऑन व्हील में बात फैलाते ही इच्छा तो बहुत लोगों ने जताई पर तैयारी में संदेह बताया| मैं भी स्वाभाव से जिद्दी हूँ तो सोचा कि जाना तो है ही पर कौन-कौन??? रवि तो था ही साथ में इसलिए हौसला भी था| अंततः हमने जाना निर्धारित किया दिनांक 19/09/2016.
                एक बात का ज़िक्र करना ज़रूरी है कि मेरी और रवि कि बातें कभी-कभी अजय सुनता था और उसके चेहरे पर भी वैसी ही ख़ुशी दिखाई पड़ती थी जैसे हमारे चहरे पर...अनायास ही एक दिन वो हमसे बोल पड़ा कि मुझे भी ले चलो अपने साथ, हम कुछ न बोल पाए| मैंने अगले ही दिन उससे पूछा कि अगर 150 CC या उससे अधिक कि बाईक है तो चलो साथ में...! उसके चहरे कि मायूसी देखकर मेरा ही दिल बैठ गया, लगा कि मैंने किसी के सपनों का क़त्ल कर दिया, लेकिन थोड़ी ही देर बाद वो मेरे पास आया और बोला...मेरी हैसियत अभी इस समय बुलेट खरीदने की नहीं है, क्या आप कोई और दूसरी बाईक का नाम बता सकते है जो मैं अपनी बजट में खरीद सकूँ!!! उसकी आँखों की चमक और उसके चेहरे का विश्वास देखकर मेरे खुद का विश्वास लौट आया था और हम सब काम छोड़कर उसके काम में जुट गए| बाईक फ़ाइनल हुई बज़ाज विक्रांत V15, अब खरीदने का जुगाड़ शुरू हुआ| सच में मैंने इतनी मेहनत और जुनून अगर अपने लिए किया होता तो शायद मैं भी उस समय किसी मोटर साइकल का मलिक होता| पर मुझमें ना तो अजय सा जुनून है और ना विश्वास|
अब बात आई रचित पर जो जाना तो चाहता था पर उसके घरवाले किसी भी हाल में मानने वाले ना थे रचित से| और रचित है बहुत शैतान, यह मुझे बाद मे समझ में आया| हुआ यूँ कि मुझे और रवि को अपने घर लिवा गया और अपने माता पिता को बोला सर आए हैं आप लोगो से बात करने, औपचारिक बातचीत के बाद शुरू हुआ पंचमरी यात्रा का प्रकरण| काफ़ी बात हुई हम लोगों के बीच और वो लोग तैयार हो गए|
सच बताउ दोस्तों कहने के लिए वो मेरी और रवि की मेहनत पर हक़ीकत यह नही| आदमी अपनो से जीत नही सकता और मैनें यह देखा रचित के माँ बाप के चेहरे पर, इकलौता पुत्र होने का उसे पूर्ण फ़ायदा मिल रहा था और उसके माँ बाप अपने पुत्र मोह मे थे|
खैर जो भी हो हम तैयार थे यात्रा के लिए और तैयारी शुरू थी, जाने का दिन भी नज़दीक था| एकाएक रवि ने मुझे मनीष मिश्रा से मिलाया और वो बोला मैं भी चलना चाहता हूँ| यकीन मानिए पहले कभी नहीं मिला था मनीष से| मान आशंकित हुआ पेर नियती पर भरोसा था और संख्या हो गई पाँच| बस बाइक तीन थी क्यूँकी मेरे पास तो थी ही नहीं और चल रहा था अजय का संघर्ष|
दिनांक १७.०९.२०१७ को अजय का संघर्ष अपने चरम पर था पर उस जाँबाज का विश्वास उसे हिलने नही देता था, मैं काफ़ी उढेड़बुन में था और लज्जित भी| शाम को ऑफीस से घर जाते वक़्त सोंच रहा था कि चक्रॅव्यू में फस गया हूँ, जाने वाले हम पाँच और मोटर साइकल तीन, कुछ ठीक नही लग रहा था मुझे| दिल से बता रहा हूँ बहुत परेसान था मैं उस रोज़|

पर शायद मुझे जीतने की आदत सी हो गई है या भ्रम है ये|रात करीब नौ बजे अजय का फोन आया की तैयार हो जाइए हमें मंदिर जाना हैपूजा करनी है बाइक की, शायद वो पल कभी भूल नही पौऊन्गा जो खुशी मुझे हुई अजय को भी ना हुई होगी|अजय के बताए नियत स्थान पेर मैं पहुँच गया और पूजा के बाद वो बोला मैं सुबह आप लोगो के साथ चल रहा हूँ| बहुत खुश था वो सच में|सपना देखो और पूरा करो- यह दिखा दिया था अजय ने हमें|
दिन पहला
हाँ तो दिन ही गया दिनांक १८.०९.२०१६ जिस दिन हमें अपनी पंचमरी यात्रा सुरू करनी थी| सुबह तीन बजे या यूँ कहूँ हम सभी लग गए तैयारी में| हमें चार बजे निकलना था नेहरू चौक बिलासपुर से, पर थोड़ा विलंभ हुआ करीब एक घंटे का| होता भी क्यूँ नही हमें बिदा करने हमारे कुछ अच्छे मित्र आय थे| इन सभी का अविवादन मिला चाय चली और हम सभी चल दिए|
तो हुआ यूँ दोस्तों वहाँ से हम थोड़ा थोड़ा अजनबी और थोड़ा थोड़ा जानकार हाहहहहा.........
चल दिए पहला पड़ाओ था केवची, वहीं हमारी पहली परीक्षा थी अभी तक हम पाँचो नही, हम पाँचो नही, हम तीन | मतलब मैं, रवि, रचित एक तरफ, और अजय और मनीष अलग अलग | अभी तक औपचारिक से थे, जैसा की तय था केवची में नास्ता होगा पर हम रुके चाय के लिए|
दोस्तो मैं तोड़ा संकोची हूँ या ऐसा कहें की सामने वाले को पढ़ना एक आदत सी है| सो मन ही मन मैं तैयार था की केवची में चाय के वक़्त ही ये यात्रा का इतिहास कैसा होगा तय हो जाएगा|सच , चाय का ऑर्डर हुआ, कुछ बातें हुई| मनीष चुप था, अजय भी चुप और हम तीनो भी चुप| शायद हम सभी एक दूसरे को पढ़ने की कोशिस कर रहे थे और इंतजार कर रहे थे की औपचारिकता कब ख़तम होती है| सुरुआत की मनीष ने, कहा ही मैं कुछ खा लेता हू और बिना किसी के पूछे ऑर्डर कर दिया सभी के लिए , मुझे छोड़ कर| मैं यही तो चाहता था, चाय, बिस्कट समोसा और ना जाने क्या क्या|
मैं यही तो चाहता था की पचमढ़ी यात्रा का ग्रूप बन जाए, और हूआ भी ऐसा ही|और उसके बाद हमने पीछे मूड के नही देखा|फिर सुरू हुआ हँसी मज़ाक,नाटक और एक दूसरे का ख्याल रखने का सिलसिला और शैतानिया क्या कहूँ लिखना उचित नही है सब बस महसूस किएआ जा सकता है|
खैर हम चल दिए पचमढ़ी की ओर मौज मस्ती करते,रुकते रुकाते पहुँचे जबलपुर| आप को बता दूँ कि बिलासपुर की तरफ से जाने से पूरा जबलपुर शहर क्रॉस करना पड़ता है और अब जबलपुर बहुत बड़ा शहर हो गया है| सो हमें उसके ट्रॅफिक से दो दो हाथ करना पड़ा और भूख भी खूब तेज़ लग गई|
किसी तरह हम जबलपुर क्रॉस कर के भेड़ाघाट के पास पहुचे, और वो गर्मी कि... माशा-अल्लाहा !!!
सब परेशन हो गये| गाड़ी को भी खाना खिलाना था, सो पेट्रोल भराया और वहीं मस्ती मज़ाक करने लगे - लगभग डेढ घंटा| साच, याद ही ना रहा की अभी आगे भी जाना है, खाना भी खाना है| पर पेट्रोल टैंक से लगभग की.मी ही गये थे की बैठ गये खाना खाने ढाबे मे|
अब तक हम परिवार की तरह हो गये थे , सो सब खुश बहुत थे, अपने-अपने परिवारों को सूचना देने के बाद खाना शुरू हुआ और वही ग़लत किया हम लोगों नें, ऐसा खाया की आप समझ सकते है  भारतिया हैं हम| आप कहीं जाने का मन नही और बज गया शाम का :३०| खैर मेरे कहनें पर सब चल दिए, पर जबलपूर से भितौनी तक रोड को रोड नहीं कह सकते|बहुत खराब है वो और पूरे तरीके से लोडेड|बहुत समय बर्बाद हुआ, थक गए हम सभी उस धूल भरी रोड में| शाम करीब :३० बजे हम लोग नर्सिंघपुर पहुँचे और हिम्मत ना कर सके आगे जाने की| सब की राय ले ली जाए यह सोच कर मैने सभी से पूछा पर ये कम्बक्त हो चुके थे मेरा ही मज़ाक बनाने लगे और बोले आप जानो बाबा(मेरा नाम है) हम तो सब मे राज़ी है| रवि एक आई टी इंजिनियर है सो हम सब से तेज है, उसने होटेल का पता लगाया फोन पे और हम सभी पहुँच गए होटेल के पास पर बात कौन करे| डिसकाउंट भी तो लेना पड़ता है ना| वहीं से सुरू हुआ काम का बटवारा, मनीष तो माहिर खिलाड़ी है बात करने मे वो आगे बढ़ा और सब फाइनल|
होटेल में खाना पीना हो रहा था पर सोना कोई नही चाहता था सब हसे जा रहे थे , और मज़ाक बनाए जा रहे थे एक दूसरे का| वहाँ लगा कि ये कितने  अपने है, इतना प्यार इतना भाईचारा, कोई बंदिश नही किसी की , और ना ही कोई औपचारिकता|
वाहा मनीष, अजय, रचित मेरे दिल के बहुत करीब गये और सो भी गये|
दूसरा दिन :-

सुबह उठे , क्यूंकी हम सभी एक कमरे में रुके थे, सभी को सुबह के नित्य क्रिया का कार्यक्रम भी था और वही लड़ाई - पहले मैं !!! पहले मैं | हा हः आह   नही बता सकता वो सब |आप सभी माफ़ करें |

बहरहाल सामान बाँधा गया मोटरसाइकल में और चल दिए|नर्सिंघपुर से पंचमरी लगभग २०० कि. मी पड़ता है, सो यह सोचा गया की दोपहर तक पहुँच जयांगे |रास्ते मैं पड़ता है गादरवारा , वहाँ पर मेरा भाई रहता है, सो नास्टा वहाँ करना था| पिताजी भी इश्वर की कृपा से वहीं थे, सो हम वहाँ पहुच गये|
नास्टा हुआ बहुत मस्त, लगा ही नही की हम पाँच कही गये है, मैं तो घर का ही था पर ये चार ज़्यादा घरवाले निकले| रचित तो बच्चों के साथ ऐसे खेलने लगा की मानो बहुत जानता है | मनीष ने तो चन्द लम्हों में मेरे पापा श्री को एक बेटे का प्यार ही दे दिया| अजय तो बड़ा ज़मीनी आदमी है , वो नास्टा लाने और टेबल पर सजाने मैं लग गया| हाँ रवि इस समय केवल निहार रहा था, शायद वो सोच रहा था की क्या हो रहा है| यकीन माने , नास्टा नही, भोजन हो गया और समय भी| सो हम पहुचे पचमढ़ी बजे के बाद|

बचपन से पढ़ता रहा था की सतपुरा के जंगल ऐसे है - वैसे है, मन मैं एक कसक थी की देखु तो सही कैसा है यह सतपुरा का जंगल| सच मानो दोस्तो, वो स्वर्ग तो नही ... पर कम भी नही|बहुत खूबसूरत है वो | वो सीधी खड़ी चटांो का पहाड़, वो वादियाँ, वो सन्नाटा, उफ्फ बहुत मनोरम है| खैर पचमढ़ी पहुँच के दोस्त के होटेल मैं रुके| उसने हमारे लिए कमरो का इंतज़ाम किया था, पर हम ने एक ही लिया| यह कम्बक्त मानते थोड़ी ना|
मैं थक चुका था और सभी थके थे सो कुछ बोल नही रहे थे घूमने के बारे में| पर शायद अजय नही थका था और हम लोगों की हिम्मत ना थी पर अब हम लोगों का एसा समन्जस्य बन गया था कि मना नही कर सकते थे सो चाय पी कर चल दिए घूमने, पता लगा असली जॅंगल नही जा सकते आज बाहर बाहर ही घूम लो| हम राज़ी हुए और जिप्सी ले कर घूमने निकल दिए| दोस्तों थकान का आलम ये था कि किसी ने कपड़े नही पहने सब हाफ़ पैंट और घेरलू टी शर्ट में ही घूमे हाहहहः|
हाँ उस दिन खाना बहुत गजब का खाया| उस होटेल का नाम याद नही पर आज नेट से देखा तो पता लगा की अब आर्क रिसोर्ट कहते है उसे,पर खाना सही मे बहुत मस्त है - आप ज़रूर खाना खाने जाना वहाँ जब जाना तो| शाम हो गई, थकान चेहरे क्या पूरे बदन पर भारी थी और रोमांच अपनी तरफ भारी था| हँसी मज़ाक अपनी तरफ भारी था| बहुत अच्छा लगा वा दिन सुकून भरा|
सोते सोते रात के १२:०० बज गए और प्लान के मुताबिक हमें सुबह वापस जाना था पर हम पाँच बहुत समय के पाबंध नही है, आपस में बात चीत कर के हम लोगो ने दूसरे दिन पूरा पचमढ़ी घूमने का मन बनाया और फिर क्या था ज़मीन और हम|

तीसरा दिन
इस दिन हमे आराम से उठना था कोई जल्दी नही थी हमें किसी काम की| सुबह पैदल पचमढ़ी टाउन को देखा, बस स्टेंड को पर पता किया कहाँ से कहाँ तक की बस से आवाजाही है और ना जाने क्या क्या| :३० पर नियत समय पर हम लोग तैयार हो गये| जिप्सी बुक थी(होटेल वाले करा देते है) सो चिंता नही थी| तैयार हुए और पूरा घूमे बहुत खूब सूरत है वो| उन सभी का ज़िक्र कर के आप सभी का रोमांच ख़तम नही करना चाहता जब आप जाएँ|
पर हाँ वहाँ हमें सबसे ज्यदा मज़ा आया वो छोटी छोटी मोटरसाइकल चलाने में| शायद कुछ समय के लए हम बचपन में पहुच गये और शैतानिया करने लगे| रवि और रचित तो शायद तो मानो इसी के लए यहाँ आय थे, वो नन्हे बच्चे की तरह वयहार कर रहे थे| भूल नही सकता मैं वो द्रश्य| अलबत्ता हमारी भी स्तिथि कुछ एसी ही थी|
हाँ धूप घर बहुत उँचाई पर है और वहाँ जा कर अपने नीचे बादल उड़ते देखना अलग अनुभूति देता है| आप च्चिलाए तो आवाज़ काफ़ी देर में पलट के आती है| हम सब वहाँ खूब मस्ती करते रहे| ना जाने कब दिन ढलने को गया| हम सब भी बहुत थक गये| पर रोमांच ऐसा कि मानो हमें अभी और थकना है| किसी तरह मैने समझा बुझा कर सब को वापस लाना चाहा पर ये थे जाँबाज सो रवि और मनीष अड्वेंचर स्पोर्ट की तरफ बढ़े और दोनो नें उसमे भी हाथ आजमाया|
बहरहाल हम लौट आए होटेल में शाम हो गई अब फिर खाना खाने की बरी थी, हम चल दिए उसी आर्क रिज़ॉर्ट में जाम कर खाया| हमने सोचा कि जल्दी सो जाते है और तड़के निकल जाएँगे पर हमें नीद ना आई| रात करीब ११:०० बजे किसी ने कहा मिठाई खाने का मन है बस फिर क्या था रवि और अजय चल दिए मिठाई लाने| आई मिठाई खाया गया और सुभ रात्रि बोल कर सो गए|

चौथा दिन
 हम सब जल्दी उठे और बदमाशियो के बीच तैयार हुए| करीब :१५ हम वापस चल दिए| काफ़ी अंधेरा था उस समय और हल्की ठंड पर यकीन मानिए पचमढ़ी से पिपेरिया तक का रास्ता हमने बहुत अच्छे से पार किया वो शायद हमारी पचमढ़ी यात्रा की सब से अच्छी राइड थी|
हम पहुचे गदरवारा फिर नास्टा हुआ और वहाँ से बिदा होकर चल दिए| रास्ता अब खलने लगा था की अब ये सब ख़तम हो जाएगा| ये मस्ती ये मज़ाक ये अपनापन सब| वापस तो आना ही था , जबलपुर पहुचते तक हम थक गए बहुत गर्मी थी|अब ना गन्ने के खेत थे और ना ही सतपुडा के जॅंगल|
कहा जाता है अगर यात्रा मे सब अच्छा हो जे तो यात्रा को अच्छा नही माना जाता| सो हमारे साथ भी हुआ| जबलपुर का होटेल जो मेरे किसी परिचित नें तय किया था बहुत बकवास| मन किया की ढाबे पे रुक जाए पर यहाँ नही पर जबलपुर घूमना चाहते थे हम पाँचो| ख़ासकर रचित| सो हमने टैक्सी लेकर घूमना चाहा और पानी ने बरसाना सुरू कर दिया| पर जीत हमारी हुई हम सब घूमे पूरा जबलपुर|
भूख अपने चरम पर थी, रात हो गई थी| जबलपुर में खाने का बहुत अच्छा प्रबंध है और मैं जनता था| हमने बस स्टैंड के पास आमंत्रण रेस्तरेंट में खाना खाया| बहुत स्वाड्िस्ट खाना था खूब खाया और सोने चले गए|
पाँचवा दिन
 आज किसी को कोई जल्दी नही थी, :०० बजे निकलना था पता नही क्यूँ किसी ने कुछ कहा नही और हम सभी निकल भी दिय|चल दिए बिलासपुर की ओर| आप को बता दूं कि जबलपुर से कबीर चौरा तक लगभग २०० क़ि. मी. का रास्ता बहुत शानदार है आप को पता नही चलेगा बस रास्ते मे अच्छे ढाबे नही है| हमने सोचा जबलपुर से निकल के कुंडम में नास्टा कर लेंगे पर केवल चाय बिस्कट से ही संतोष करना पड़ा| खैर चले जा रहे थे इतना सुंदर रास्ता और शायद यात्रा समाप्त होने का डर|सब अपनी अपनी सोच में और थकान उपर से|डिंडोरी मे . नास्टा किया लगभग ११:०० बज रहे होंगे|पर सच वो नास्टा कभी भूल नही सकते कहने को वो पोहा,जलेबी,आलू बन्डा छोला पर वो भूख के बाद का स्वाद कसम से आनंद गया हम सभी को|
वहाँ रवि ने कुछ फल भी खरीद लिए और हम चल दिए| अब छत्तीसगढ़ की सीमा करीब ही थे पर रचित ने कहा अभी नही जाऊँगा और वो रोड के किनारे धूप मे लेट गया| पहले अच्छा ना लगा पर फिर हम सभी धीरे धीरे उसके साथ अपनी जॅकेट बिछा के लेट गए| आते जाते लोग पता नही क्या सोचते होंगे पर वो एहसास कभी भूल ना पाऊँगा मैं इस जीवन में| वो हैंड पंप से पानी पीना भी बहुत सुखद था (यह और ना बतौँगा)| खैर केवची पहुँचे वही जहाँ जाते वक़्त रुके थे खाने का ऑर्डर दिया गया और आराम भी किया गया खाने के पहले और बाद मे भी|चल दिए वहाँ से अब केवल ९० कि. मी. बचा था | शाम भी होने वाली थी सो चले जाना था| रतनपूर में सब से बिदा लिया गया और वहाँ से मैं और रवि अलग चल दिए| रवि के कहे वो शब्द मुझे आज भी याद आते है| उसने कहा कि पूरे रास्ते में आप मेरे साथ कहीं नही बैठे मेरी गाड़ी में, एसा नही है कि ये कोई कठोर शब्द है पर उसका भोलापन अपनापन मुझे झकझोर देता है आज तक| शायद वो मेरे बहुत करीब था और है|(क्या बताने लगा मैं)
रवि ने मुझे घर छोड़ा, शाम हो गई थी| सब ने एक दूसरे को अपनी कुशलता बता दी पहुचने की| थकान अपने चरम पर थी सो सब इस हालत मे नही थे कि कुछ बोलते|
यात्रा समाप्त हो चुकी थी, मैं सोच रहा था अब क्या-
अचानक दीमाक में आया अरे ये तो यात्रा की सुरुआत है -------- अंत नही       

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