एक हसीन शाम २४/०९(रचित संदीप के नाम)

एक हसीन शाम २४/०९(रचित संदीप के नाम)
दोस्तो ऐसा नही है कि कोई पहली बार है कि मैं यह कहूँ की आज की शाम हसीन थी पर शायद यह बुरे के बाद अच्छे का आना था सो कहना पड़ता है एक हसीन शाम  जैसा कि लिखा एक हसीन शाम २४/०९ (रचित, संदीप के नाम से ही आप लोगो को आभास हो गया होगा कि यह केवल शाम का ज़िक्र नही है)| सच भी है|
बात सुरू हुई करीब २३/०९ की रात को मेरे मित्र की तबीयत अचानक खराब हुई और सारी ज़िम्मेदारी मुझ पर गई, रात भर एमर्जेन्सी में बीता वो भी खड़े खड़े|पेशे से सिविल इंजिनियर हूँ सो काम भी ऐसा है आजकल की थक जाता हूँ| थकु भी क्यूँ ना .उम्र भी तो ४२ के पार गई है| खैर रविवार यानी २४/०९ की दोपहर तक अविराम थकान और दीमाकी कसरत के बाद मैने हथियार डाल दिए| घर कर नहा के सोने के अलावा कोई चारा ना था मेरे पास, पर नियति को मेरी आखों में नीद ना भेजना ठीक लगा सो केवल लेट कर आराम ही कर सका|
शाम करीब :०० बजे उठने के पश्चात मोबाइल पर रचित का मिस कॉल देखा तो अनायास ही लगा दिया फोन, बात हुई और रचित ने कहा कि चले कही शाम घूम आए| चूकि बहुत करीब है दिल के वो मना नही कर सका और हामी भर दी| वो नौजवान आया और बोला संदीप भी रहा है साथ चलेंगे|
 संदीप और रचित की शारीरिक संरचना ईस्वर ने काफ़ी समय लेकर बनाया है उन्हे सब कुछ ज़ायदा दिया है चाहे वो लंबाई हो,वजन हो, या कायाकल्प हाहहाहा.......
अब हम तीन संदीप की कार से चल दिए राम टेकरी(रतन पूर- बिलासपुर) की छोटी सी पहाड़ी देखने| बिलासपुर से करीब २५ कि. ही है सो हम धीरे धीरे चले पर मोपका बायपास गुजरते हुए धान की हरियाली ने हमें रोक सा लिया| अगर कहा जाता है बिलासपुर धान का कटोरा है तो ग़लत नही है| वो खूबसूरती केवल आखों से देख कर महसूस की जा सकती है, दूर दूर तक हरियाली| मेरी पूरी थकान मिटी जा रही थी मान रोमांचित हुआ जा रहा था| और हम लोग खुश हो रहे थे| रास्ते में हमे बहुत सारे लोग फोटो खिचते हुए दिखे, उत्सव मनाते हुए दिखे मानो यह बायपास रोड नही कोई पार्क है| शाम की सूर्य की आखरी किरण उस पूरे रोड को बहुत खूबसूरत बना देती है| हमें कुछ भान ही ना रहा कि हमें जाना भी है आगे
रचितऔर संदीप अपने कालेज की दिनो की बाते बताने लगे(एक ही कालेज मे पढ़े है दोनो) और अनायास ही मैं अपने पुराने दिनो की यादे उन्हे बताने लगा| बहुत बाते हुई, खूब ढेर सारी बाते अच्छी,बुरी और ना जाने क्या क्या( आप समझ सकते है कालेज के दिनो की बाते)
किसी तरह हम रतन पूर बायपास पहुचे और अब संध्या बेला चुकी थी| अंधेरा हो गया था| पर बाते अभी भी चालू थी| बातो बातो में हम लोगो ने वहीं बबलू ढाबा पे खाना खाने का निर्णय किया और पहुँचे भी बबलू ढाबा| नवरात्रा होने के कारण उस ढाबा पर काफ़ी चहल पहल थी और केवल शाकाहारी खाना का मेनू हमारे सामने था|
रचित और संदीप नें बोला दल तड़का, छोला और पनीर मसाला मँगाते है| मैने केवल मिसी रोटी जोड़ने को बोला| खाना आया फिर सुरू हुआ अपने अपने हिस्से का| बबलू ढाबा काफ़ी नामचीं है महामाया मंदिर रतनपुर के होने से|लगभग हमेशा भीड़ रहती है, हो भी क्यू ना ऐसा स्वाद उफ़| केवल खा कर जाना जा सकता है| यकीन माने बहुत स्वदिस्त भोजन है वहाँ, मेरे मूह में पानी फिर गया| खाने के बाद मसाला कोल्ड ड्रिंक हम चलने ही वाले थे कि संदीप ने कहा अभी पान खाना बाकी है| मैने कहा अरे हम लोग तो पान नही खाते,तो उसने कहा खाओ सर कभी कभी खाना चाहिए पान| सच खाने सा ही स्वदिस्त है वा पान|
अब वापस चल दिए फिर कालेज के दीनो की बाते शेयर करते हुए| करीब :४५ पर मैं अपने घर गया| मानता हूँ थोड़ा ज़्यादा खा लिया है पर ऐसा  खाना मिले तो आप भी ज्यदा खा लेंगे|
अब सोचता हूँ ये कौन हैं जो इतना प्यार दे देते हैं किसी को|कितने सच्चे हैं ये दोनो नवजवान, उत्साह से भरपूर है पर अपने कर्तब्य को भी नही भूले है|


भगवान इन्हे खुश रखे|



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