मेरी भूटान यात्रा (अलग अंदाज मे)

मेरी भूटान यात्रा (अलग अंदाज मे)
काफ़ी उठापटक के बाद हम लोगो के लए वह दिन आया दिनाक १३.०८.२०१७ जिस दिन हमे अपनी यात्रा सुरू करनी थी|
जैसा वीदित था बिलासपुर से सुबह :०० निकलना था पर ऐसा हो ना सका| रात मे काफ़ी भागदौड़ मनमनुवल सब चला|आरोप प्रत्यारोप भी खूब हुए| खैर सब के बाद हम सभी लगभग रिवर व्यू निर्धारित स्थान पर मिले| वहाँ से सुरू हुआ जस्न और मिलने मिलाने का सिलसिला|
सच बता रहा हूँ भावुक हो गया लोगो से मिल के, वो सम्मान पा के, अच्छा लगा| सायद ये हम सभी पर विस्वास था उन लोगो का हम पर या एक भरोसा जो वो पूरा होना देखना चाहते थे |
तो दोस्तो इस तरह हमारी यात्रा का आरंभ हुआ और हम सात लोग निकल पड़े अपनी लेट इट रेन यात्रा पर|
हमे विदा करने आय हुए लोगो से बिछड़ने का दर्द क्या होता है एहसास हुआ वासुदेव आँगन ढाबा पे, मन भारी था पर कही एक खुशी भी थी यात्रा की| पर यह कोई आन्तिम विदाई तो थी नही फिर मिलने का रोमांच था सो सही था|
हमारी यात्रा का प्रथम दिन काफ़ी रोमांचित था क्यू की हम लोगो का आपस मे सामंजश्य बैठना तोड़ा मुस्किल हो रहा था, सभी अपने अपने तरीके से अपने को स्रेस्ष्टा बताना चाह रहे थे| बहरहाल हम लोग कोरबा होते हुए जश्पुर पहुँच गये |कोरबा मे नास्ता के वक़्त एक दूसरे को जानने का अच्छा मौका मिला पर गर्मी और ट्रॅफिक का शोर और हमर  छत्तीसगढ की सड़के  हाहहाहा| शाम को या यू कहे रात को हम लोग जश्पुर सर्किट हाउस में रुके| वही हमसे ग़लती हो गई, हमारा एक साथी मनीष मिश्रा जो विगत कई मोटर साइकल यात्रा मे साथ एक कमरे मे सोता था वो दूसरे कमरे मे सोने चला गया या यू कहे मेरे कारण ऐसा हुआ| इसकी पूरी ज़िम्मेदारी मेरी थी और अब मेरे पास अब केवल अफ़सोस;|
खैर रात को खाना पीना हुआ हुआ साथ रहे अच्छा लगा| किसी के चेहरे पेर कोई थकान नही दिखी सब मस्त रहे और अपने अपने चयनित स्थान पर सोने चले गए|
दूसरा दिन
पिछले दिन ही तरह हम उठे लोगो का अभिवादन सुरू हुआ, मेघराजा मेहरबान थे थोड़ा थोड़ा पर समान बांधना सुरू हुआ और प्रस्थान| मशीन मे समान बाँधने की कला अगर शीखनी हो तो राइडर अजय (रॉकेट) से बेहतर कोई नही सीखा सकता वो एक मस्ती से भरा जाँबाज है जो हर वक़्त मदद के लए आगे रहता है|
पर सभी की तरह मुझे या कहे हमे नास्ता का इंतजार हुआ और वो हुआ भाई साहब गुमला के आगे सिरसी मे,काफ़ी देर मे भूख बहुत लगी थी| उस दिन एहसास हुआ भूख सभी को लगती है आमिर ग़रीब ताकतवर या कमजोर| अच्छा नास्ता मिला खूब खाया और चल दिए आगे की ओर|
पहुचे राँची और वही हुआ सब गड़बड़ हाहहहः  हम शहर के बीचो बीच से निकलने लगे, बहुत ट्रॅफिक वास्तव मे वो जाम, वो गर्मी, वो शोर उफ़ और कुछ कहना उचित नही|
फिर हमारा मित्र मनीष मिश्रा गया अपने रुआब में, मैं यही तो चाहता था| उसमे गजब की फुर्ती है पता नही कहाँ से आती है कभी कभी| वो आगे बढ़ा और निकाल ले गया शहर से और हम पहुँचे गिरिडीह बिहार रात करीब :०० बजे|होटेल मीर मे रुके,खाना खाया| थाकन सभी के चेरहे पर थी बस मलाल था की हम साथ मे बात चीत नही कर पा रहे| पर सायद अब तक हम लोगो ने ऐसा ही मान लिया था की ऐसा ही ठीक है
रास्ते मे कुछ फोटो लिया गया, दूरी भी लंबी तय की, हजारी बाग हो कर निकले पर रास्ते मे लोगो का अभिवादन ऐसा मिला की सब बहुत अच्छा लगा|
तीसरा दिन
दिन था अपनी आज़ादी का सो मन मे उत्स्साह था और रोमांचित भी| हमारा एक साथ है सन्नी जायस्वानी उसकी उस दिन खुशी देख कर आस्चर्य हुआ क़ि वो नवजवान इस दिन को किसी भी हाल मे मानना चाहता है| हमने झंडा रोहन किया उसकी बाइक पर, रास्ट्र गान गाया मिठाई बाटी| सच बता रहा हूँ सम्मान बढ़ गया मेरे मन मैं सन्नी के लिए|
ऐसा मैं नही कर सकता|
अब चले हम लोग अपनी यात्रा मे, कहा जाता है की इंसान अपनी ग़लती से सीखता है और सीखने के लिए ग़लती करना ज़रूरी है सो हमने भी की| एक वीर जी (सरदार जी) ने हमे अपना रास्ता बताया और हम सभी ने ना चाहते हुए भी वो रास्ता अपना लिया| अब हमारे जायदा बात ना करने का रिज़ल्ट आने लगा की सभी उसी रास्ते मतलब गिरिडीह से गोविंदपुर,रानीगंज होते हुए सिलिगुरी| चले तो ये सोच कर की रास्ता हाइवे का है पर सच हम किसी तरह फर्रखा पहुँचे रात के :०० बजे| होटेल लिए नाम नही बताना चाहता क्यूकी वो अच्छा नही, ह्में बेवकूफ़ बनाया गया| ना पार्किंग की जगह ना ही एसी का चलना| बारिस बहुत हो रही थी सो मजबूरी मान कर हम लोग तय स्थान पर सोने चल दिए, पर सब खराब नही था फर्रखा में|
वहाँ रात का खाना जिस ढाबे में खाया उसका स्वाद सयद कभी भूल नही पाऊऊँगा| हमारा साथी रवि(पापा / बेटू) कह रहा था की कालेज के बाद आज ऐसी दाल मिली है, वास्तव मे वो दाल रोटी ऐसी थी ही, यकीन मानो मज़ा गया| सोते सोते १२:०० बज गए, थकान सभी के चेहरे पर अब दिखने लगी थी पर सायद यह राइडिंग का रोमांच था जो थकने नही देता था|
चौथा दिन
अब ये नियम सा बन गया था की ह्म चार (मै,रवि,विवेक,अजय) एक कमरे में और सन्नी,नितिन,मनीष एक कमरे में रहने लगे| मतलब मै अपने कमरे का पूरा हाल जानता था पर उन लोगो के कमरे का हाल चाल नही मालूम और सायद मैं उन लोगो के कमरे में जाता भी नही था| एक अजीब सी दूरी बनती जा रही थी|
हाँ हम चारों की मस्ती मशाल्लाह| वह अजय का नित्यक्रिया के पहले प्राणायाम करना और साथ साथ मोबाइल देखना बहुत सुखद अनुभूति देता है आज तक| खूब मौज मस्ती और नाटक|
अजय का एक नियम सा बन गया था की वो सुबह रोज मेरी पीठ पर चढ़ कर पीठ दबाता था| सायद वो अपनेपन का एहसास है या पता नही वो है ही ऐसा| पर हाँ वो हम सभी को अपना बना चुका है और हमारे लिए ये उसका होना सम्मान की बात|
सुबह हुई और फिर सामान बांधना सुरू हुआ और वही चला चाय बिस्कट का दौर मस्ती मे| अलविदा फर्रखा कहने के बाद हम लोग निकले सिलिगुरी की ओर रास्ता लंबा था पर रास्ते का मंज़र देख कर दिल चीखने लगा| वो बाढ़ की तबाही का मंज़र,सारे लोग,मावेसी सभी सड़को पर| सच कहता हू दिल रो रहा था और उदासी अपने चरम पर| प्रकर्ती से लड़ पाना किसी के बस मे तो नही पर सुधारा तो जा सकता है| हमने किया कुछ नही ...................., कई जगह हम लोग दो दो फीट पानी से निकले, खराब सड़को में गिरने से बचे| एक बार तो मन किया की वापस चल दे पर अब पीछे मुड़ना अपनी प्रकर्ती मे नही है| चलो भगवान सब की मदद करे और उन्हे शक्ति दे इस आपदा से लड़ने की|
हाँ फरक्खा बैराज देख कर आँखे फटी की फटी रह गई| सच वो समुद्र का एहसास तो करा ही देता है| बारिस का मौसम है तो और अपने अपने रौद्र रूप है हाहहहहाहा| वहीं बैराज पे रवि ने मोटर साइकल पे चलते चलते एक फोटो खीची मोबाइल से, पर वाहा पर लगे हुए सुरक्षा के कर्मचारी ने बड़ी विनम्रत्रा से डिलीट कराया और ऐसा ना करने की सलाह दी सो वहाँ का फोटो नही है हमारे पास| हम आगे बढ़े कई बार जाम में फँसे , बारिस भी खूब जोरो पर ,पर किसी तरह किशन गंज पहुच गए|
वास्तव मे बता रहा हूँ थक गये हम सभी और परेशान भी| हाँ हमारे पास रखा आर एस घोल ने बहुत काम किया नही तो परेशानी हो जाती| खैर आगे शाम :०० बजे के करीब सिलिगुरी पहुँचे, थक गये थे और परेशान भी थे| पर सही बात वहाँ की चाय और नास्ता पा कर सारी थकान मिट गई, फिर सुरू हुई होटेल की तलाश और पहुँचे होटेल गुप्ता में| एक आदत है हम सभी में की होटेल पहुचो रस्सी बाँधने का जुगाड़ डूढो और गीले कपड़े डालो सूखने|
खैर जो भी है वही खाना खा कर हम सभी नियत स्थान पर सोने चले गये|
दिन पाँचवा
बहुत आराम भरा दिन लग रहा था, क्यूकी गंगटोक जाना लगभग निरस्त हो चुका था, मुझे रास्ते में कुछ भारतीय सैनिको से मालूम हुआ की हालात ठीक है पर ना जाय तो अच्छा रहेगा| बहरहाल हम सुबह थोड़ा देर से होटेल से निकले पर होटेल के सामने चाय से मुलाकात हो गई बिस्कट भी साथ गया और जम गया रंग| वहाँ नितिन छाबरिया का बचपाना देखने को मिला, वो पेड़ के नीचे दाढ़ी बनवाना - अच्छा लगा मन में था की आज भूटान की धरती को चूम लूँगा|
चले साथ साथ शिवॉक तक पहाड़ी रास्ता या यू कहे सुंदर वादियाँ, सच मन बहुत भाऊक हो गया और आगे आया चाय के बागान का मैदान| मित्रो बहुत सुंदर है वो क्षेत्र अनुरोध करता हूँ ज़रूर जाएँ|
मैं एक अदना सा आदमी हूँ पर सायद मेरी सारी भावना वहाँ जाग्रत हो गई और मन सब भूल कर अपनी यादों में खो गया कुछ नही याद रहा मुझे उसके बाद बस मैं और मेरी तन्हाई- क्या लिखू.......|
मालूम ही ना चल पाया की भूटान गया, कहने का मतलब जैगोन गया तब लगा की अरे मैं तो यात्रा पर हूँ| थकान ने फिर मुझे और मेरे साथियो को घेर लिया पर रोमांच अपने चरम पर था, भूटान फ़तह जो करना था|
वहाँ हम सभी किसी के रोकने से कहाँ रुकने वाले थे अलबत्ता हमने रास्ते मे कुछ कुछ खाया था ख़ासकर मोमो| बहुत अच्छे है वहाँ के मोमो पर चटनी ज़रा सभाल के खाना दोस्तो पहाड़ी मिर्ची बहुत तेज़ है|
समय बज रहा था शाम का चार और हम लोग घुस गये सीधे भूटान फेनसुंलिंग शहर में| सच नज़ारा ही बदल गया, विदेश में रहना या जाना कभी भी मन को भा नही सकता अपना देश अपना देश है| वहाँ पोलीस के द्वारा सब बताए जाने के बाद हम सभी दुबारा जैगोन होटेल गये| अरे दोस्तो हम लोग निपट भारतीय है बंधन पसंद नही
खैर जैसा हम लोगो ने फ़ैसला किया था हम लोग होटेल में समान छोड़ कर पुनः भूटान गये घूमने, घूमे भी खूब फेंसूलिंग  बहुत अच्छे लोग है वहाँ के, बहुत सीधे सादे लोग नियम का पालन करने वाले लोग| हाँ वहाँ की चाय और मोमो बहुत अच्छे लगे हम लोगो को|
भूटान की वादियाँ और हरियाली में मैं इस तरह फँसा कि अपने को ही भूल गया शायद यही कारण है की कुछ ज़यादा ना लिख पा रहा हूँ|
शायद याद गई वो||||||
रात मे होटेल में गये सोने , रोज की तरह सोने चले गये पर आज ज़यादा हँसी मज़ाक ना हो पाया| शायद सभी अपने सपने सच होने पर खुश थे और अपनो को याद कर रहे थे|मैं तो यही समझता हूँ कि अगर कोई सपना देखा जाए और वो पूरा हो चाहे ८०% ही तो आत्मिक संतोष बहुत मिलता है| यह एहसास हम सभी को था और अपनो को मिस कर रहे थे| पर होटेल के कमरे में भी तो अपने थे शायद एक दूरी थी हम सभी में जो आज कम हो रही थी आज| उस दिन एहसास हुआ कि रवि और मेरा रिस्ता कुछ अजीब है, वो कैसे समझता है मेरी ज़रूरतो को ये मैं ना समझ पाया आज तक|ये कहे सब्द मेरे अपने है, सही भी है उसका ज़बरदस्ती खाना खिलाना और पैर को दबाना और कपड़े ना धोने देना| शायद पिछले जन्म का कोई रिस्ता.........|
बारी थी अब अलविदा भूटान कहने की बोझिल मन से कह भी दिया हम सभी ने अलविदा पर शायद प्रकर्ती को ये मंजूर नही था, वो बोल रही थी कुछ देर और रहो| बारिस घोर बारिश , पर हम भी जीत के सिकेण्दर थे चल दिए बारिश में ही और जीत भी हुई हमारी|
हाइवे की सड़क मिल गई अपने और करीब गये अब डरना कैसा चल दिए घर की ओर पंख फैला कर| रात करीब १०:०० बजे एक पेट्रोल पंप पर वहाँ के मलिक से मुलाकात हुई, उनके कहने पर हम लोगो ने अपना रुकने का स्थान पूर्णिया से हटा कर कानकी बाबा रामदेव मंदिर में रखा| शायद उपर वाले का कोई आदेश था और सही था हमारे लिए| वो जगह बहुत अच्छी है, बहुत शांति है वहाँ पर ज़रूर जाए| पास ही लाइन होटेल पर खाना खा कर सो गये|वहाँ थकान अपने चरम पर थी और हम मानने वाले ना थे|
दिन सातवा
आज सब को पता था अब घर चलना सो तैयार हुए| पर वाह रे अपने नितिन उस्ताद कहीं गये और के बोले चलो अनानास खाते है,हम सब हंस दिए/ पर ग़लत थे हम लोग सही मे मज़ा गया अनानास खा के, खूब खाया पेट भर के| उसके बाद सिर्फ़ और सिर्फ़ चलना था| थोड़ा बहुत परेशानी भी आई, नितिन जी का थ्रटॉल केबल टूटा, मेरी और सन्नी की पंचर हुई पर सब अच्छे से सबके सहयोग से निपट गया|
दोस्तो आज थकान अपने चरम पर थी और हमें लगता कि हम सब कर लेंगे| और हमने किया भी, हम सीधे बाबा धाम देवघर पहुँचे और होटेल लेकर सो गये| आप सभी जानते है वहाँ के बारे में| मन दुखी था कि हम चार एक जगह, मनीष एक जगह, और सन्नी और नितिन एक जगह (पर शायद ये सब लिखना ठीक नही)
दिन आठवा
आज सुबह कमरे में चार बजे से ही सब जाग गये और बाबा के दर्शन की तैयारी में लग गये| सब गये और मैं........|
वहाँ से १०:०० बजे चलने का प्रोग्राम, चल भी दिए पर सुबह से ही थकान थी या पता नही कुछ और| दिन खराब सा लग रहा था सब मुह बंद कर के मोटर साइकल चला रहे थे| इतनी शांति हो गई की डर सा लगने लगा| फिर हुआ भी वही विवेक की थकान जयदा हुई और वो अपने को सभाल नही पाया, गिर गया वो रवि से लड़ के|
हम सभी का दिल बैठ गया, रात का :०० बजा था हम राँची और गुमला के बीच बेरो में थे| पर शायद बाबा भोलेनाथ ने ही कुछ अपने भक्त से कराया| कुछ हुआ नही भला हो एनफील्ड की जेकेट, ग्लव्स और हेल्मेट का| दोस्तो मोटर साइकल चलाए पर ये सब ज़रूर पहनें|
पर इसके बाद सभी मे बला की इस्फूर्ति गयी, मनीष ने अपनी पूरानी चाल पकड़ ली, सनी ने तो कुछ देखा ही नही लगा विवेक को माँ की तरह सभालने, सब सही हो रहा था| वहाँ मुझे अपने इस ग्रूप पे गर्व हो रहा था|
शायद अभी और रोमांच बाकी था सो वो होने वाला था | हमें ना मिला होटेल और ना मिला सोने लायक ढाबा बस फिर क्या था रवि,विवेक,अजय तीनो ने मिल कर तान दिए अपने टेंट| घर से भी अच्छा| खाना बना कर खाया ढाबे में, खिलाया अपनो को अच्छा लगा सब का साथ|दोस्तो शायद वो रात उन दिनो की सबसे बेहतरीन रात थी आज तक ऐसी नीद नही आई थी और ना आया था ऐसा सकून|
इस यात्रा में आज तक भूल नही पाया उस दिन को
दिन नौवा
सुबह सुहानी थी सब मस्ती में थे कोई जाना नही चाहता था वहाँ से घर की ओर मैने तो बस यही समझा| जाना तो था सभी को सो चल दिए अपने अपने घर की ओर और पहुँच भी गये शाम रात होते होते|
बस अब यादें है :
एक मलाल रह गया बस बिहार का बाटी चोखा  ना खा पाया|

अच्छा लगे तो अच्छा|||||

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