गठबंधन
दोस्तों कहने को तो है ये एक यात्रा वत्रातं पर शायद मेरी क़लम अपने उदेश्य पर खरी नहीं उतर पाई है । क्यूँकि यात्रा के बारे में बात करना ही था पर कुछ अपने बातों की तरफ़ मुड़ गया मैं। हुआ यूँ यह बंजारा मन काफ़ी दिनों से परेशान चल रहा है और सच ही है परेशानी में अपने बीते हुए दिन कुछ ज्यदा ही याद आते हैं। ख़ैर बात यह है की मुझे अपने और आपके परिचित संदीप राठोर की शादी में जाने का मौक़ा मिला। शायद उसने बहुत ख़ास लोगों को ही बुलाया था। होगी कोई मजबूरी या सामाजिक बंधन। यह हमारा भारतीय समाज का ताना बाना ही कुछ ऐसा है की वह हमें कहीं ना कहीं मजबूर कर देता है । बहरहाल मुझे इस मुद्दे पे कोई राय नहीं देनी है। सुबह जल्दी उठ के जाना था। चूँकि हम ट्रेन से जा रहे थे सो समय पे पहुँचना मजबूरी थी। हम नियत समय पर बिलासपुर जंक्शन पहुँच गये और हमारे साथ राइडर रचित भी हो लिए। थोड़ी जद्दो जहद के बाद हमें सीट मिली और हम राजनंद गाँव की ओर चल दिए। रास्ते में ट्रेन में बैठे बैठे मैं अपनी शादी की बिताई पूरी रस्मों रिवाज में पहुँच गया। वो मेरा आतूरता से इंतज़ार करना उस पल का...