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वो बेहतरीन दिन

वो बेहतरीन दिन (पचमढ़ी यात्रा के एक साल)                 आज जब पलटकर देखता हूँ, बीते हुए दिनों की तो कहीं न कहीं पचमढ़ी यात्रा के दिनों पे सोच आकर ठहर जाती है| ना चाहते हुए भी मन खुश हो जाता है और लबों पर अनायास ही हंसी आ जाती है| शायद वो दिन ही ऐसे थे जो मैंने और मेरे चार साथियों ने एक साथ बिताये| नहीं वो दिन नहीं वो बेहतरीन हसीन दिन ...!                 तो मित्रों प्रस्तावना ये है कि मैं बैठा कहीं घूमने का सोच रहा था और रवि आ गया मेरे पास, उसके शब्द याद है कि सर कहाँ हो पचमढ़ी गए हो क्या? बस फिर क्या था हम दोनों ही थोडा सा घुमक्कड़ है और मूडी भी, लग गए पचमढ़ी के रास्ते, खाने, होटल और खर्चे की प्लानिंग में...| दो दिन हम लोग व्यावहारिक बातें करते रहे, पर अब पचमढ़ी यात्रा हमारे दिमाग से दिल में उतरने लगी थी| अब हम दोनों को यह तय करना था कि कब और किस साधन से चलना है? और सब से ज़रूरी कौन-कौन...हा हा हा...!    ...